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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१२८

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  • सङ्गीत विशारद *

को 'धातु' कहा जाता है, धातु के भी पांच नाम हैं यथाः-(१) उद्ग्राह (२) ध्रुव (३) मेलापक (४) अन्तरा (५) आभोग । “अनिबद्ध गान" उसे कहते हैं, जब कोई रचना स्वरों में बँधी हुई हो किन्तु ताल में न हो । अनिबद्ध गान के अन्तर्गत राग आलाप, रूपकालाप, आलप्ति गान तथा स्वस्थान नियमों का आलाप, गायन, ये सब आते हैं क्योंकि इनमें ताल का प्रयोग नहीं होता। विदारी गीत तथा आलापों में विभिन्न छोटे-छोटे भागों को ही विदारी कहते हैं, निबद्ध गान के अन्तर्गत जो उद्ग्राह, ध्रुव, मेलापक, अन्तरा और आभोग, ऊपर बताये जा चुके हैं, वे सब विदारी की श्रेणी में ही आजाते हैं। विदारी में जब अन्तिम स्वर आते हैं वे ही न्यास, अपन्यास कहलाते हैं। अल्पत्व 9 अल्पत्वं च द्विधा प्राक्त मनभ्यासाच्च लंधनात् । अनभ्यासस्त्वनंशेषु प्रायो लोप्येष्यपीष्यते ॥ रागों में अल्पत्व और बहुत्व का एक महत्वपूर्ण स्थान है। अल्पत्व का अर्थ है कमी के साथ और बहुत्व माने ज्यादा तादाद में । जब किसी राग में किसी स्वर का महत्व कम दिखाकर राग विस्तार में उसका उपयोग कमी के साथ किया जाता है तो उसे 'अल्पत्व' कहते हैं। इसका प्रयोग २ प्रकार से किया जाता है-(१) लंघन से (२) अनभ्यास से। लंघन द्वारा जब अल्पत्व दिखाया जायगा तो आरोह या अवरोह में वह स्वर छोड़ दिया जायगा । जैसे शुद्ध कल्याण में निषाद का अल्पत्व है तो उसे आरोह में छोड़ देते हैं या लांघ जाते हैं, यह प्रयोग लंघन से हुआ और इस प्रकार आरोह में उसका अल्पत्व माना जायगा । अनभ्यास द्वारा अल्पत्व इस प्रकार होता है कि किसी राग में कोई स्वर कम प्रमाण में प्रयोग किया जावे और उस पर बार-बार अभ्यास न किया जाय और न इस स्वर पर अधिक देर तक ठहरा ही जाय, जैसे भीमपलासी में ध और रे का अनभ्यास- अल्पत्व है । प्रायः इस श्रेणी में वर्जित या विवादी स्वर आते हैं, और इनका अल्प उपयोग कुशलता पूर्वक अनभ्यास अल्पत्व के द्वारा ही विवादी स्वर के नाते किया जाता है। बहुत्व .यह भी २ प्रकार से दिखाया जाता है । अलंघन और अभ्यास । अलंघन द्वारा वहुत्व इस प्रकार माना जायगा कि किसी राग के आरोह या अवरोह में उस स्वर को छोड़ा न जाय अर्थात् उसे लांघा न जावे और उस पर अधिक सका भी न जावे, जैसे कालिंगड़ा में मध्यम स्वर छोड़ा नहीं जाता, किन्तु उस पर अधिक देर तक रुकते भी नहीं, अर्थात् केवल अलंधन द्वारा ही उसका बहुत्व दिखाते है । अभ्यास द्वारा बहुत्व दिखाना उसे कहते हैं जब किसी स्वर को बारम्बार और देर तक दिखाया जाता है, जैसे हमीर में धैवत का प्रयोग