पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१३१

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  • सङ्गीत विशारद *

गिटकरी तान-दो खरों को एक माथ, शीघ्रता के साथ एक के पीछे दूसरा लगाते हुए तान ली जाती है, जैसे-निसा निसा सारे सारे रेग रेग गम गम मप मप पध पध निसा निसा इत्यादि। जाडे की तान-कठ के अन्तस्थल से आवाज निकाल कर जबडे की सहायता मे जब तानें लीजाती हैं तो उन्हे जबडे की तान कहते हैं, ये मुश्किल होती हैं और सुलझे हुए गायक ही ऐसी तान लेने में समर्थ होते हैं। हलक तान-जीभ को क्रमानुमार भीतर-बाहर चलाते हुए हलक तानें ली जाती हैं। पलट तान किसी तान को लेते हुए अवरोह करके लोट आने को पलटतान या पल्टा तान कहते हैं, यथा-सानिधप मगरेसा बोलतान-जिन तानों में तान के साथ-साथ गीत के बोल भी मिलाकर विलम्बित, मध्य और द्रुत, आवश्यकतानुमार ऐसी तीनो लयो मे गाये जाते हैं, वे बोल तानें कहलाती है। जैसे-गर्म रेसा मंध मप गुनि जन गाऽ वत आलाप --गायक अव अपना गाना आरम्भ करता है तो राग के अनुसार उसके स्वरों को विलम्बित लय में फैलाकर यह दिसाता है कि मैं कौनसा राग गारहा है। आलाप को ही स्वर विस्तार भी कहते हैं। जैसे विलावल का स्वर विस्तार इस प्रकार शुरू करेंगे गs, रे , मा 5 सा रे सा ऽग ऽ म ग प म ग, म रे, सा555 इत्यादि । बढत--जब कोई गायक, गाना गाते समय एक-एक या दो-दो स्वरों को लेते हुए एव छोटे-छोटे स्वर समुदायों मे बढते हुए बडे-बडे स्वर समुदायो पर श्राफर लय को धीरे-धीरे बढाता है और फिर वोलतान गमक इत्यादि का प्रयोग करता है तब उसे 'बढत' कहते हैं। " S.