पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१३२

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१४१ आधुनिक निच छालामा आधुनिक सङ्गीत में, प्राचीन निबद्ध-अनिबद्ध गान के अन्तर्गत अनिबद्ध गान का केवल १ प्रकार प्रचार में है और वह है "आलाप"। आलापगान करने वाले बहुधा ध्रुपदिये होते थे। जिनका स्वर ज्ञान तथा राग ज्ञान उच्चकोटि का होता था। इसी कारण उनका आलापगान सुन्दर और आकर्षक होता था। किन्तु अब तो ख्याल गायक भी सुन्दर आलाप करते देखे जाते हैं। आलाप करने के वर्तमान समय में २ ढङ्ग हैं:-- १-नोमतोम द्वारा २-आकार द्वारा। नोमतोम का आलाप त, ना, न, री, नों, नारे, नेनेरी, तनाना, नेतोम, नना इत्यादि शब्दों के साथ किया जाता है । और आकार का आलाप आssss *के उच्चारण द्वारा । आकार से आलाप करने की अपेक्षा नोमतोम द्वारा आलाप प्रभावशाली और उत्तम होता है, क्योंकि इसमें बीच में किसी स्थान पर सम दिखाने की अच्छी सुविधा रहती है । आकार द्वारा आलाप में यह सुविधा उतनी अच्छी दिखाई नहीं देती, तथा नोमतोम के आलाप में अनेक स्वर वैचित्र्य दिखाने का कार्य सरलतापूर्वक होता है और दुनलय का आलाप भी इसमें भली प्रकार किया जा सकता है, क्योंकि द्रुतलय के आलाप मे त, ना, न, री, नो, इत्यादि अक्षर या शब्द गायक को बहुत सहायता पहुँचाते रहते हैं। किन्तु आकार के आलाप में द्रुतलय में काम दिखाते समय कठिनाई रहती है, और आकार के आलाप से श्रोता भी ऊब जाते हैं, जबकि नोमतोम का आलाप उन्हें बराबर स्फूर्ति और चेतना प्रदान करता रहता है। वास्तव में "नोमतोम" का आलाप प्राचीन काल की ईश्वरोपासना का बिगड़ा हुआ स्वरूप है। कहा जाता है कि प्राचीन गायक आलाप द्वारा ईश्वर वन्दना “ओं अनन्त नारायण" या 'तू ही अनन्त हरी' इत्यादि प्रार्थना गान किया करते थे। बाद में केवल स्वरों का ही चमत्कार रह गया. और शब्द निरर्थक प्रयोग किये जाने लगे। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि सङ्गीत के पूर्व पंडित संस्कृत भाषा के विद्वान होते थे, अतः उनको शब्दोच्चारण का ज्ञान भी उच्चकोटि का था । बाद में मुसलमान गायक उन शब्दों का उच्चारण करने में तो असमर्थ रहते थे, किन्तु वे उन स्वरों और रागों पर मोहित थे, इस प्रकार उन्होंने 'नोमतोम' की युक्ति द्वारा राग और स्वर तो पकड़ लिये, किन्तु शब्द छोड़ दिये। यही हाल 'तराने' की गायकी का भी हुआ। गायक प्रायः पूरे आलाप को चार भागों में बाँटते हैं:-(१) स्थाई (२) अन्तरा (३) संचारी तथा (४) आभोग। पहिले स्थाई का भाग लेकर आलाप आरम्भ करते हैं:- (१) स्थायी-- स्थायी में पहले षड़ज लगाकर वादी स्वर का महत्व दिखाते हुए पूर्वाङ्ग में आलाप चलता है। शुरू में कुछ मुख्य स्वरसमुदायों को लेकर फिर एक-एक नया