पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१३६

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  • संगीत विशारद *

१४५ ग्रामराग-प्राचीन सङ्गीत के कुछ ग्रन्थों में ग्रामों से जातियों और जातियों से ग्राम रागों की उत्पत्ति मानी गई है । प्राचीनकाल में राग गायन के स्थान पर जाति गायन ही प्रचलित था, अतः रागों के प्रकार या वर्ग को ही 'ग्रामराग' कहा जाता था । उपराग-प्राम रागों में ही विभिन्न स्वरों के हेर-फेर से उपरागों की उत्पत्ति हुई । राग-यह भी ग्राम रागों के माध्यम से ही उत्पन्न हुए । भाषा-गाने की एक विधि या शैली को कहा जाता था। उस शैली का गायन जितने रागों में व्यवहृत होता था, उन्हें भाषा राग कहते थे । मतङ्ग ने भाषा के अन्तर्गत १६ राग बताये हैं। विभाषा-गाने की एक दूसरी विधि या प्रकार को कहा जाता था। इसके अन्तर्गत मतङ्ग ने १२ राग अपने ग्रंथ में लिखे है। . अन्तर्भाषा-गाने की एक तीसरी विधि थी, जिसका प्रयोग विशिष्ट रागों में किया जाता था। रागाङ्ग, भाषांग, क्रियांग और उपाङ्ग के विवरण भातखण्डे जी ने अपनी पुस्तक में इस प्रकार दिये हैं, जो उन्हें दक्षिण के एक पण्डित ने बताये थे । रागांग-ऐसे शास्त्रीय रागों को कहा जाता था, जिनमें राग के सभी शास्त्रीय नियमों का पालन किया जाता हो । भाषांग- ऐसे रागों को कहा जाता था जो शास्त्रीय राग नियम पर आश्रित न रह कर भिन्न-भिन्न देशों के विभिन्न शैलियों या भाषाओं द्वारा निर्मित होकर व्यवहार में लाये जाते थे, उन्हीं शास्त्रीय रागों के भाषांग कहलाते थे, जिनसे वे बहुत कुछ मिलते-जुलते थे। क्रियांग-जिन रागों में शास्त्रीय राग नियमों का पालन करते हुए कुछ गायक अपनी क्रिया से किसी विवादी स्वर का प्रयोग करके उसमें विशेषता पैदा करते थे, वे क्रियांग राग कहलाते थे। उपांग-क्रियांग रागों की तरह, अन्य रागों में हेर-फेर करके उपांग राग उत्पन्न किये जाते थे। इनमें मूल राग के किसी स्वर को हटाकर नया स्वर ले लिया जाता था। सङ्गीत दर्पण के लेखक पंडित दामोदर ने इनकी व्याख्या इस प्रकार संक्षेप में बताई है:- रागाङ्ग राग वे हैं जिनमें ग्राम राग की कुछ छाया मिले । भाषाङ्ग राग-वे हैं जिनमें भाषा राग की छाया हो । क्रियाङ्ग राग-वे हैं जिनसे शिथिल इन्द्रियों को बल व उत्साह प्राप्त होता हो । उपाङ्ग राग -वे है जिनमें राग की छाया बहुत ही कम मिलती हो । इसी से मिलता-जुलता वर्णन कल्लिनाथ ने सङ्गीत रत्नाकर की टीका में दिया है। उपरोक्त शास्त्रीय मत भेद के कारण, उपरोक्त शब्दों का ठीक-ठीक विवरण क्या हो सकता है ? इसका निर्णय करना कठिन ही है, अतः विभिन्न शास्त्रों का व्यापक अध्ययन करके विद्वानों द्वारा इस विषय पर कोई एक मत निर्धारित कर लिया जाये तभी यह समस्या हल हो सकती है।