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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१३५

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रागों का १० विभागों में वर्गीकरण करने का प्राचीन सिद्धान्त प्राचीन मगीत पण्डितों ने अपने रागी का १० विभागों में वर्गीकरण इस प्रकार किया है - . (१) ग्रामराग, (१) उपराग, (३) राग, (2) भाषा, (७) विभापा, (६) अन्तर्भापा, (७) रागाग, (८) भापाग, (६) क्रियाग, (१०) उपाग । ग्राम राग 'मगीतरत्नाकर' अन्य मे शुद्वा, भिन्ना, गोड्या, वेमरा और साधारण इन पाँच गीतियों के अन्तर्गत ३० ग्रामराग माने हैं, जो इस प्रकार हैं - (१) शुद्वा-१ पडजपाम, २ मध्यमप्राम, ३ शुद्धकैशिक, ४ शुद्धपचम, ५ शुद्व कैशिकमध्यम, ६ शुद्ध साचारित, ७ शुद्ध पाडव । () भिन्ना-१ भिन्नपडज,- • भिन्नपचम, ३ भिन्नकैशिक, ४ भिन्नतान, ५ भिन्न- कैशिकमध्यम । (३) गौड्या-गोड कैशिक, २ गोडपचम, ३ गोडकैशिकमध्यम । (४) बेसरा-१ मौनीर, • टक्क, ३ बोट्ट, ४ मानवकैशिक, ५ टक्कौशिक, ६ हिन्ोल, ७ मालव पचम, = वेसर पादच । (५) साधारग-रूपमा पार, ३ भभाएपचम, ४ नर्त, ५ गाधार पचम, ६ पहजफेशिक, ७ कुकुभ । उपरोक्त ३० ग्राम रागों के अतिरिक्त ८ उपराग, २० राग, पूर्व प्रसिद्व रागाग, ११ भापांग, १० क्रियाग, ३ उपाग, ६६ भापाराग, विभापाराग, ४ अन्तर्भापाराग, १३ शाङ्गदेन के ममय मे प्रचलित राग, ६ भापाग, ३ क्रियाग और २७ उपग बताये गये हैं, इस प्रकार रत्नाकर ग्रथ में २६५ राग वताए गये हैं। 'सङ्गीतममयमार' अन्य मे पार्श्वदेव ने देशी मङ्गीत के अन्तर्गत १०१ राग मानकर उनका वर्गीकरण इस प्रकार किया है रागागराग मापागराग उपागराग क्रियागराग २१ सम्पूर्ण १८ सम्पूर्ण ४ पाडव ११ पाटः १५ ०शक - १२ सम्पूर्ण ४ श्रीदुन अपने विचार इस प्रकार प्रगट किये हैं