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- सङ्गीत विशारद *
श्री भातपण्डे ने पुराने घरानेनार उस्तादों के गायनों की स्वरलिपियाँ तैयार करने बहुत ही परिश्रम किया था। उन्होंने समस्त भारत का भ्रमण करके उस्तादों की सेवा तथा मुशामद करके स्वरलिपिया तैयार की। उस समय कुछ ऐसे भी उस्ताद थे जो अपने गाने की स्वरलिपि किसी भी प्रकार दसरे व्यक्ति को बनाने की आना नहीं देते थे। श्री भातपण्डे ने बडी युक्ति और कौशल मे परदों के पीछे छिप-छिप कर उनका गायन मुना और स्वरलिपिया तैयार की एव बहुत मी स्वरलिपिया प्रामोफोन रेफों द्वारा भी तैयार की, इस प्रकार कई हजार चीजों की म्वरलिपिया तैयार करके उन्होंने क्रमिक पुस्तक मालिका : भागों में प्रकाशित कर सङ्गीत विद्यार्थियों का मार्ग प्रशस्त बना दिया। इसी प्रकार पडित विधादिगम्बर पलुस्कर ने भी कई पुस्तकें तैयार की। पलुस्कर जी की स्वरलिपि पद्वति जो प्रारम्भ में उनके द्वारा चालू हुई थी, अब उसमे कुछ परिवर्तन हो गये हैं, यही कारण है कि विष्णु दिगम्बर जी की प्रारम्भिक मूल पुस्तकों मे, तथा आज उनके विद्यालयों में चलने वाली 'राग विज्ञान' आदि पुस्तकों के चिन्हों मे काफी अन्तर पाया जाता है । तथापि वर्तमान स्वरलिपि प्रणाली उनकी प्राचीन प्रणाली से अधिक सुविधाजनक है, यही कारण है कि यह परिमार्जित स्वरलिपि पनि विशेष रूप से प्रचार में आरही है। विष्णुदिगम्बर जी की स्वरलिपि पद्धति जो आजक्ल प्रचार मे रही है वह इस प्रकार है- विष्णु दिगम्बर पद्धति के स्वरलिपि चिन्हः- ( १ ) जिन स्वरों के ऊपर नीचे कोई चिन्ह नहीं होता वे मध्य सप्तक के शुद्ध स्वर समझे जाते हैं, जैसे-रे ग म प ( • ) जिन स्वरों के नीचे हलन्त का निशान होता है उन्हें कोमल या विकृत स्वर मानते हैं, जैमेरिगर नि ( ३ ) तीत्र या विकृत मध्यम को उल्टे हलन्त द्वारा इस प्रकार दिमाते हैं-म, (१ ) ऊपर विन्दी वाले स्वर मद्र सप्तक के माने जाते हैं, जैसे-प ध नि ( ५ ) जिन स्वरों के ऊपर सडी लकीर होती है वे तार सप्तक के स्वर होते हैं। जैमेसा र गेम (६ ) स्वर पर मात्राओं के लिये इस प्रकार चिन्ह रक्से हैं + चारमात्रा जैसे-सा + दोमात्रा जैसे-सा सा - १ मात्रा, जैमे-सा जैसे-सा मात्रा, ० आधी मात्रा, जैसे- प १ मात्रा, जैसे-म (७) उच्चारण के लिये अपग्रह चिन्ह का प्रयोग करते हैं और गीत के अक्षरों के ठहरान को लम्बा करने के लिये निन्दु • का प्रयोग करते हैं। जैसे- SS प I-