- सङ्गीत विशारद *
१४६ -पम ग ( ८ ) स्वरों के नीचे या १ इत्यादि लिखा हो तो वहां १ मात्रा में ३ या ६ स्वर बोले जाते हैं। (६) किसी स्वर के ऊपर कोई दूसरा स्वर लिखा हो तो उसे कण स्वर (Grace note) के रूप में प्रयुक्त करते हैं (१०) ताल में सम के लिये १ का चिन्ह लगाते है खाली के लिये + चिन्ह का प्रयोग होता है, अन्य तालियों के लिये क्रमशः २, ३, ४ आदि अंकों का प्रयोग करते हैं । भातखण्डे पद्धति के स्वरलिपि चिन्हः- (१ ) जिन स्वरों के नीचे ऊपर कोई चिन्ह नहीं होता उन्हें शुद्ध स्वर मानते हैं, जैसे-सा रे ग म ( २ ) जिन स्वरों के नीचे आड़ी रेखा खींचदी गई हो, उन्हें कोमल स्वर कहते हैं, जैसे-रे ग ध नि ( ३ ) तीव्र मध्यम की पहिचान के लिये म के ऊपर एक खड़ी लकीर खींचदी जाती है, जैसे-म ( ४ ) नीचे बिन्दु वाले स्वर मन्द्र सप्तक के माने जाते हैं, जैसे-म पध ( ५ ) ऊपर बिन्दु वाले स्वर तार सप्तक के मानते हैं, जैसे- गं रें सां ( ६ ) बिना बिन्दी वाले स्वर मध्य सप्तक के समझने चाहिये, जैसे- (७ ) गाने के जिस शब्द के आगे ऽ ऐसे चिन्ह जितने हों तो उसको उतनी ही मात्रा बढ़ाकर गाते हैं, जैसे-श्या SS म ( 5 ) स्वरों के आगे इस प्रकार जितने - निशान हों उसे उतनी ही मात्रा बढ़ाकर गाते हैं, जैसे-ग (६ ) कई स्वरों को एक मात्रा में गाने-बजाने के लिये इस चिन्ह का प्रयोग होता है, जैसे-पमग अथवा रेगमप (१०) स्वरों के ऊपर -- इस प्रकार के चिन्ह को मींड कहते है, जैसे-म प ध नि अर्थात् यहां पर मध्यम से निषाद तक की मींड ली जायेगी। (११) किसी स्वर के ऊपर कोई स्वर लिखा हो तो उसे कण स्वर समझना चाहिये, जैसे-प यानी ग को ज़रा छूते हुए प स्वर को गाना या बजाना । (१२) जो स्वर ब्रैकिट में बन्द हो उसे इस प्रकार गाना चाहिये। पहले उसके बाद का स्वर, फिर वह स्वर जो त्रैकिट में बन्द है, फिर उसके पहले का स्वर तथा फिर वही ब्रैकिट वाला स्वर । यानी एक मात्रा में चार स्वर गाये जायेंगे, जैसे (प)=ध प म प (१३) ताल में सम दिखाने का यह x चिन्ह होता है । (१४) खाली के लिये यह ० चिन्ह प्रयोग होता है । (१५) सम को पहिलो ताली मानकर अन्य तालियों के लिये २-३-४ आदि लगाते हैं। ग