- सङ्गीत विशारद *
रम की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार नृत्य तथा ताल के द्वारा भी हमें विभिन्न प्रकार के रस प्राप्त होते हैं । एक सफल नर्तक अपने नाच में विभिन्न प्रकार के भान द्वारा रमोत्पादन करने में सफल होता है। ताडव नृत्य में वीर तथा रोद रम, लास्य मे शृङ्गार रम तथा कथक नृत्य की अनेक भाव-भगियों द्वारा शृङ्गार, हास्य, करुण और शान्त रसों की सफलता पूर्वक उत्पत्ति की जा सकती है। यहा पर न स्वर है न शन्द, फिर भी रम की सृष्टि हाती है, यही नृत्यकला की विशेषता है। ताल और लय का सम्बर भी रम मे होता है । यथा "तथा लया हास्यश्रगारयोर्मध्यमाः। वीभत्समयानकयोविलम्बितः । वीरगेद्राद्भुतेषु च द्रुतः ॥" (विष्णुधर्मोत्तर पुराण) अर्थात् -हास्य एवं अंगार रमी में मध्यम लय का प्रयोग होता है, वीभत्स एम भयानक रमों में निलम्बित लय का तथा वीर, रौद्र एवं अद्भुत रसा में द्रुतलय प्रयोग होता है। इस प्रकार गायन, वादन, नर्तन, ताल ओर लय सङ्गीत के इन ममी अगो द्वारा विभिन्न रसों की मृष्टि मम्भव है।