पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१४५

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  • सङ्गीत विशारद *

१-विलावल शुद्ध सुरन सों गाइये, धग संवाद बखान । राग निलावल को समय, प्रातः काल प्रमान ।। राग-विलावल वर्जित स्वर-कोई नहीं थाट-बिलावल आरोह–सा रे ग म प ध नि सा जाति-सम्पूर्ण अवरोह -सा नि ध प म ग रे सा वादी-ध, सम्बादी ग पकड गरे, गप, ध, नि सा स्वर-सभी शुद्ध हैं गायन समय-प्रातकाल प्रथम प्रहर यह उत्तराद्न वादी राग है । यह राग कल्याण राग के समान दिसाई देता है, अत इसे प्रात काल का कल्याण भी कहते हैं। २-अल्हैया विलावल आरोहन मध्यम नहीं, धग सवाद बखान । उतरत कोमल नी लखै, ताहि अल्हैया जान ।। राग-अल्हैया विलावल वर्जित स्वर-आरोह में मध्यम थाट-बिलावल आरोह–सा, रे, गप, ध नि सा जाति-पाडव सम्पूर्ण अवरोह-सानिध, प, मग रेसा वाढी-ध, मम्वादी ग पफड-गरे, स्वर-अवरोह में दोनों नि गप, वनिसा गायन समय-प्रातकाल बिलावल राग से ही अल्हैया विलाचल की उत्पत्ति हुई है। अवरोह में कोमल निपाद का थोड़ा सा प्रयोग इसके मौन्दर्य को बढाता है। निपाद और गान्धार इसमे वक हैं ३-खमाज दोउ निपाद नीके लगें, आरोही रे हानि । गनि वादी सम्बादि तें, खम्माजहि पहिचानि ॥ रागसमाज याट-नयमाज जाति-पाडव, सम्पूर्ण -ग, सम्बादी-नि -दोनो नि यि चार इम प्रकार प्रगट किये हैं- वर्जित स्वर-आरोह मे रिपभ आरोह–सा, गम, प, धनिसा । अपरोह-

--सा नि ध प, मग, रेसा ।

पाड-निघ, मप, ध, मग । गायन समय-रात्रि का दसरा प्रहर साँचा:सही