पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१४६

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  • सङ्गीत विशारद *

१५५ इस राग के आरोह में धैवत कुछ दुर्बल रहता है। आरोह में तीव्र और अवरोह में कोमल निषाद लिया जाता है । इस राग का वैचित्र्य ग म प नि इन चार स्वरों पर निर्भर है । आरोह में पंचम स्वर पर अधिक नहीं ठहरना चाहिये। इसी लिये कोई-कोई गायक ग म ध नि सां, इस प्रकार पंचम छोड़कर भी तानें लेते देखे जाते हैं तथा कोई-कोई ग म प नि सां इस प्रकार स्वर लेते हैं । ४-यमन , शुद्ध सुरन के सङ्ग जब, मध्यम तीवर होय । गनि वादी संवादि तें, यमन कहत सब कोय । राग-यमन थाट-कल्याण जाति-सम्पूर्ण सम्वादी-नि स्वर-म तीव्र, शेष स्वर शुद्ध वर्जित स्वर-कोई नहीं आरोह-सारेग, मैप, ध, निसां । अवरोह–सांनिध, प, मंग, रे सा । पकड़-निरेगरे, सा, पमंग, रे, सा । गायन समय--रात्रि का प्रथम प्रहर । वादी-ग, यह पूर्वाङ्ग वादी राग है । कभी-कभी इसमें कोमल मध्यम का प्रयोग भी विवादी स्वर के नाते कर दिया जाता है, तब कुछ लोग उसे यमन कल्याण कहते हैं । ५-काफ़ी कोमल गनी लगाय कर, गावत आधी रात । पस वादी सम्बादि तें, काफी राग सुहात ।। राग-काफी थाट-काफी जाति-सम्पूर्ण वादी-प, सम्वादी सा स्वर-ग, नि कोमल, बाकी शुद्ध वर्जित-कोई नहीं आरोह–सारेग, म, प, धनिसां । अवरोह–सां नि ध, प, मग, रे, सा । पकड़-सासा, रेरे, गग, मम, प । -मध्य रात्रि " गायन समय- कभी-कभी इसके आरोह में तीव्र गन्धार और तीव्र निषाद लेकर इसमें विचित्रता पैदा की जाती है। इस राग का वैचित्र्य सा ग प नि इन स्वरों पर बहुत कुछ अवलम्बित है।