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- सङ्गीत विशारद *
११-देस वाढी रे, सम्वादि पा, दोउ निपाद लगजायें । देम राग सम्पूर्ण करि, मध्य रात्रि में गायें ॥ राग-देस थाट-समाज जाति-सम्पूर्ण वादी-रे, सम्वादी-प स्वर-दोनों निपाद, शेप स्वर शुद्ध वर्जित स्वर-कोई नहीं आरोह-सा, रे, म प, नि सा । अवरोह-सा नि ध प, म ग, रे ग सा । पफड-रे,मप, निपप, पधपम, गरेगसा । समय-मध्यरात्रि। देस राग का स्वरूप सोरठ से बहुत मिलता-जुलता है, अत देस के बाद सोरठ या सोरठ के बाद देस का गाना कठिन पडता है। इस राग मे गधार स्वर स्पष्ट रूप से लिया जाता है किंतु सोरठ में उसे कुछ दया हुआ रसते हैं। इसके आरोह में ग और 4 यह दोनों स्वर दुर्वल हैं, अत कम प्रयोग किये जाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं सममाना चाहिये कि देस के प्रारोह में ग-च वर्जित हैं। १२-भैरव धरि वादी सम्बादि करि, रिध कोमल सुर मान । प्रात समय नीको लगे, भैरव राग महान ॥ राग-भैरव थाद-भैरव जाति-सम्पूर्ण सम्वादीने स्वर-रेध कोमल, याकी शुद्ध वर्जित स्वर-कोई नहीं आरोह -सा रे ग म, पध, नि सा । अवरोह-सानिधु, पमग, रेसा । पकड-सा, गम, प,ध,५। समय-प्रातकाल वादी-ध, यह बहुत प्राचीन और गभीर राग है । कभी-कभी इसके अवरोह में कुशल- गायक कोमल निपाद का प्रयोग भी करते हैं । इस राग में रेघ स्वर अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं इन स्वरों का प्रयोग करते समय इमे कालिंगडा और रामकली से बचाना चाहिये । भैरव के श्रारोह में रिपभ का अल्पत्व रहता है एव मध्यम से रिपभ पर मींड लेकर आने में इसका माधुर्य बढता है। विचार इस प्रकार प्रगट किये हैं -