पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१४८

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  • सङ्गीत विशारद

इस राग का उल्लेख हृदय प्रकाश व हृदय कौतुक ग्रन्थ में पाया जाता है। मध्यमाद सारंग में धैवत वर्जित है, किन्तु शुद्ध सारंग में धैवत लगता है, इस लिये यह राग उससे अलग अपना अस्तित्व रखता है । गौड़ सारंग से भी यह बिल्कुल अलग है क्योंकि गोड सारंग कल्याण थाट का है और यह काफी थाट का है। इसी प्रकार नूर सारंग से भी यह बचालिया जाता है क्योंकि नूर सारंग में शुद्ध मध्यम नहीं है । ६-विहाग गनि सम्वाद बनायकर, चढ़ते रिध को त्याग । रात्रि दूसरे प्रहर में, गावत राग बिहाग ॥ राग-बिहाग थाट-बिलावल जाति-औडव-सम्पूर्ण वादी-ग, सम्वादी नि स्वर-सव शुद्ध स्वर हैं वर्जित स्वर-आरोह में रे, ध आरोही-सा. ग म प नि सां । अवरोह-सां नि ध प म ग रे सा । पकड़-निसा, गमप, गमग, रेसा । समय-रात्रि का दूसरा प्रहर इसके आरोह में तो रे ध वर्जित हैं ही, किन्तु अवरोह में रे -ध अधिक प्रबल नहीं रखने चाहिए वरना बिलावल की छाया दीखने का भय रहता है। विवादी स्वर के नाते कभी-कभी इसमें तीव्र मध्यम का भी प्रयोग देखने में आता है । अवरोह में निषाद से पंचम पर आते समय तथा गन्धार से षड़ज पर आते समय कुशलता से चलना चाहिए। १० -हमीर कल्यानहिं के मेल में, दोनों मध्यम जान । धग वादी संवादि साँ, राग हमीर बखान ॥ . राग-हमीर थाट-कल्याण जाति-सम्पूर्ण वादी-ध, सम्वादी-ग स्वर-दोनों मध्यम, बाकी शुद्ध वर्जित स्वर-कोई नहीं आरोह–सारेसा, गमध, निध, सां अवरोह-सांनिधप, मपधप, गमरेसा पकड़--सारेसा, गमध समय--रात्रि का प्रथम प्रहर 9 इस राग में तीव्र मध्यम का प्रयोग आरोह में थोड़ा सा करना चाहिए, शुद्ध मध्यम आरोह अवरोह दोनों में है। इस राग के अवरोह में कभी-कभी धैवत से पंचम पर आते समय ध न प इस प्रकार कोमल निषाद का प्रयोग विवादी स्वरके नाते देखने को मिलता है कोई-कोई गुणी इसमें पंचम वादी मानते हैं, किन्तु भातखण्डे जी के मतानुसार इसका वादी स्वर धैवत ही ठीक है।