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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१५१

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  • सङ्गीत पिशाग्द *

१५-तिलककामोद पाडव संपूरन कयो, आरोही धा नाहिं । रिप वादी सवादि तें, तिलककमोद यताहिं ।। राग-तिलककामोद | वर्जित स्वर-बारोह में धैवत याट-समाज आरोह–सा रे गसा, रेमपधमप, मा जाति-पाडव-सम्पूर्ण अवरोह-मापधमग, मारेग, सानि वाढी-रे, सम्वादी-प पकड–पनिसारेग, मा, रेपमग, मानि म्वर-

-सब शुद्ध

ममय-रात्रि का दूसरा प्रहर इस राग का स्वरूप कई जगह देस और सोरठ मे मिलता है, किन्तु इयर इस राग मे कोमल निपान विल्कुल वर्जित रसने के कारण यह राग देस ओर सोरठ से बच जाता है । इम राग से चाल वक्र होने से ही इसकी विचित्रता बढ जाती है । महाराष्ट्र में तिलककामोद गाते समय दोनों निपाट लेने का रिवाज है। १६-यासावरी गधनी कोमल सुर लगें, चढत गनी न सुहात । धग वादी सवादि तें, आसावरी कहात ।। राग-पामावरी वर्जित स्वर-अारोह मे ग, नि याट-अामावरी आरोह-सा, रेमप, व सा । जाति-यांडव सम्पूर्ण अवरोह -सा निव, प, मग, रेसा वाढी- सम्बादी-ग पक्ड-रे, म, प, निध प सर-गवनि कोमल उत्तर भारत मे आमारी राग में कोमल ऋपभ लगाकर गाने का प्रचार है, फिन्तु दक्षिणी ग्याल गायक इसे तीव्र रिपभ से ही गाते हैं। इम राग का वैचित्र्य ग, प, व इन तीन स्वरों पर निर्भर है। अरोह मे यह राग विशेप रूप मे सिलता है । १७-केदार दो मध्यम केढार में, सम मम्याद सम्हार । ग्रारोहन रिग बर्राज कर, उतरत अल्प गंधार ।। राग-केनगर -आरोह मे रे, ग थाट-कल्याण आरोह-माम, मप, धप, निव, सा । जाति - श्रौढुव मम्पूर्ण अवरोह–सा, निघ, प, म प गमरेमा । वाटी-मा, सम्बादी म पकड–सा, म, मप, धपम, पम, रेमा । समय-रात्रि का प्रथम प्रहर समय-प्रातकाल वर्जित स्वर- - दोनों मध्यम पिचार इस प्रकार प्रगट किये हैं.