- सङ्गीत विशारद *
१६१ हमीर के समान इस राग में भी दोनों मध्यम लगाये जाते है, किन्तु यह इस राग की विशेषता है कि कभी-कभी इसके अवरोह में दोनों मध्यम एक के बाद दूसरा इस क्रम से आजाते हैं। केदार का प्रारोह करते समय षडज से एकदम मध्यम पर जाना बड़ा सुन्दर मालुम होता है । इसके अवरोह में कभी-कभी धैवत के साथ कोमल निषाद का अल्प प्रयोग करते हैं। इस प्रकार निषाद का प्रयोग विवादी स्वर के नाते होता है । इसके अवरोह में गन्धार स्वर वक्र और दुर्बल रहता है। अतः इस स्वर का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए अन्यथा कामोदादि राग दिखाई देने लगते हैं। १८-देशकार जबहिं बिलावल मेल सों, मनि सुर दिये निकार । धग वादी संवादि तें, औडुव देशीकार ॥ राग-देशकार थाट-बिलावल जाति-औडुव वादी-ध, सम्वादी-ग स्वर-शुद्ध वर्जित स्वर-म, नि आरोह- सा रे ग प ध सां, अवरोहसां ध प गपधप ग रे सा । पकड़-सा ध, प, गप, धप, गरेसा समय-दिन का प्रथम प्रहर इस राग को गाते समय विभिन्न स्थानों पर धैवत दिखाने में सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा भूपाली की छाया आ सकती है। ध्यान रहे कि भूपाली राग पूर्वाङ्ग प्रबल है और देशकार उत्तरांग प्रबल है । १६-तिलंग रिध वर्जित, दोउ नी लगें, लखि खंमाजहि अङ्ग । गनि वादी संवादि कर, गावत राग तिलङ्ग ।। राग-तिलंग थाट-खमाज जाति-औडुव वादी-ग, सम्वादी-नि स्वर-दोनों निषाद वर्जित स्वर-रे, ध आरोह -सा ग म प निसां अवरोह--सां, नि, प, मग, सा पकड़-निसागमप, निसां, सांनिप, गमग सा समय--रात्रि का दूसरा प्रहर इस राग में निषाद और पंचम की सङ्गत भली मालुम होती है । धैवत वर्जित होने से खमाज से यह राग अलग होजाता है। इसके अवरोह में कोई-कोई गायक थोड़ा सा रिषभ स्वर विवादी के नाते प्रयोग करते हैं।