- संगीत विशारद *
१६३ . राग-सोहनी वर्जित स्वर--प थाट -मारवा आरोह-साग, मधनिसां । जाति-पाडव षाडव अवरोह-सारसा, निध, मध, मंग, रेसा । वादी-ध, सम्वादी ग पकड़-सां, निध, निध, ग, मधनिसां । स्वर-रे कोमल, म तीव्र समय--रात्रि का अन्तिम प्रहर । इस राग में कुशल गायक विविध स्थानों पर कोमल मध्यम का प्रयोग बड़ी कुशलता से करते हैं । इसमें तार षड़ज चमकता रहता है और इससे राग की रंजकता बढ़ती है। इसके आरोह में रे स्वर वर्जित तो नहीं है, किन्तु वह दुर्बल रहता है । · २३-जौनपुरी कोमल गधनी सुर कहे, आरोही गा हानि । वादी धा, सम्बादि गा, जौनपुरी पहचानि ॥ राग--जौनपुरी वर्जित स्वर-आरोह में ग। थाट--आसावरी आरोह--सा, रेम, प, ध, निसां । जाति-पाडव सम्पूर्ण अवरोह--सां, निध, प, मग, रेसा । वादी-ध, सम्वादी-ग पकड़-मप, निधप, ध, मपग, रेमप । स्वर-गध नि कोमल समय-दिन का दूसरा प्रहर । इस राग का स्वरूप आसावरी से मिलता-जुलता है, किन्तु आसावरी के आरोह में निषाद वर्जित है और इस राग के आरोह में निषाद लेते हैं, इस प्रयोग से यह आसावरी से बच जाता है। प्रचार में आजकल जौनपुरी में दोनों निषादों का प्रयोग मिलता है। २४-मालकौंस रिप वर्जित, औडुव मधुर, सब कोमल सुर मान । मस वादी संवादि सों, मालकौंस पहिचान ॥ राग- --मालकौंस वर्जित स्वर-रे, प। थाट-भैरवी आरोह-निसा, गम, ध, निसां । जाति-औडुव अवरोह–सांनिध, म, गमगसा । वादी-म, सम्वादी-सा पकड़-मग, मधुनिध, म, ग, सा। स्वर--ग ध नि कोमल --रात्रि का तीसरा प्रहर । इस राग में ध्रुपद व ख्याल की गायकी अधिक दिखाई देती है, क्योंकि यह गम्भीर समय--