पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१५३

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  • सङ्गीत विशारद *

२०-हिण्डोल रिप सुर वर्जित मानकर, मध्यम तीवर बोल । ध ग वाढी संवादि तें, औडुव राग हिंडोल ।। राग-हिण्डोल थाट-कल्याण जाति-औडुव-प्रौदुव वादी-च, सम्बादी-ग स्वर-म तीव्र, शेप स्वर शुद्ध वर्जित स्वर-२,प। आरोह-माग, मधनिय, सा । अवरोह-सा, निध, मंग, सा। पकड़-सा, ग, मधनिधमंग, सा। समय-दिन का प्रथम प्रहर । इस राग के प्रारोह में नि का प्रयोग कम किया जाता है और वह भी चक्र स्वर के रूप में । यदि हिंडोल मे निपाद का प्रयोग अधिक हो जाय तो सोहनी की छाया पड सकती है। इस राग में कोई-कोई गायक रिपभ और शुद्ध मध्यम का किंचित प्रयोग करते हैं। उत्तम गायक इसमे गमों का बहुत सुन्दर प्रयोग करते हैं। २१-माखा रिध वाढी सवादि कर, पचम वजित कीन्ह । रे कोमल मध्यम कडी, राग मारवा चीन्ह ।। राग-मारवा वर्जित स्वर-प . थाट-मारवा जाति-पाडव पाडव वाढी-रे, सम्बादी-व स्वर-रे कोमल, म तीव्र । आरोह--सारे, ग, मध, निध, सा। अपरोह-सानिध, मगरेसा। पकड-चमगरे, गर्मग, रे, सा। समय-दिन का अन्तिम प्रहर । इस राग के प्रारोह मे निपाद कई स्थानों पर वक्र गति से प्रयोग होता है। रेगध इन स्वरों पर इस राग की विचित्रता निर्भर है। अवरोह में जब रिपभ वक्र होता है तब यह राग अधिक चमकता है । इममें मींड का काम अधिक अच्छा नहीं लगता। २२-सोहनी तीवर मा, कोमल रिपम, पचम घजित मान । ध ग वादी सवादि तें, फियो सोहनी गान ॥ . • इम प्रकार प्रगट किये है -