- सङ्गीत विशारद *
१६५ राग -बसन्त थाट-पूर्वी जाति-पाड़व सम्पूर्ण वादी-सा, सम्वादी म स्वर-दोनों मध्यम, कोमल रेध वर्जित-पंचम (आरोह में) आरोह- -सा ग म ध र सां। अवरोह-रे नि ध प मंगमधु मंगरेसा । पकड़-मध. रे, सा, रे, निधुप, मंगमंग। समय-रात्रि का अन्तिम प्रहर । इस राग के २ प्रकार प्रसिद्ध हैं। एक में तो दोनों मध्यम लेते हैं तथा पंचम वर्जित करते हैं। दूसरी प्रकार में पंचम वर्जित न करके इसे सम्पूर्ण जाति का मानते हैं । इस दूसरी प्रकार में वादी स्वर तार षड़ज और सम्वादी पंचम मानते हैं । किन्तु पहले प्रकार में पंचम वर्जित होने के कारण वादी सम्वादी स-म मानते हैं। इस राग में दोनों मध्यम लिये जाते हैं। उत्तराङ्ग प्रधान होने के कारण इसमें तार षड़ज पर विशेष जोर रहता है। २८-शंकरा आरोही रेमा बरजि, अवरोही - मा त्याग । गनि वादी संवादि सों, कहत शंकरा राग । 7 राग--शंकरा थाट -बिलावल जाति-औड़व षाड़व वादी-ग, सम्वादी नि स्वर-सब शुद्ध वर्जित स्वर-आरोह में रेम, अवरोह में म आरोह–साग, प, निध, सां । अवरोह--सांनिप, निध, गप, गरेसा । पकड़-~सां, निप, निध, सां, निप, गप, गसा समय--रात्रि का दूसरा प्रहर . कोई-कोई सङ्गीतज्ञ इसका वादी स्वर षडज और सम्वादी पंचम मानकर समय मध्यरात्रि मानते हैं । शंकरा के २ प्रकार देखने में आते हैं। एक प्रकार में रे-म वर्जित करके इसकी जाति औडुव मानते हैं और दूसरे प्रकार में केवल मध्यम वर्जित करके इसे षादव जाति का राग मानते हैं। दोनों प्रकार सुन्दर हैं। इसके आरोह में रिषभ अल्प रहता है । कुशल सङ्गीतज्ञ इस राग में तिरोभाव करते समय रे-ध को अधिक प्रयोग दिखाकर, कल्याण राग का आभास दिखाते हैं, किन्तु पनिध, सांनि, यह स्वर संगति और मध्यम का लोप इस राग को पहिचानने में सहायता देता है । शंकरा का स्वरूप विहाग से कुछ मिलता है, किन्तु विहाग में मध्यम स्वर स्पष्ट होने के कारण यह उससे अलग हो जाता है। २६-दुर्गा (खमाज थाट) जबहिं मेल खमाज में, रिप सुर वर्जित कीन्ह । दोउ निषाद संवाद गनि, औडव दुर्गा चीन्ह ।।