पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१५७

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  • मनमीत निशारद *

राग-दुर्गा याट-समाज जाति--औडुव यादी-ग, मनाढी-नि स्वर-दोनों निपाद वर्जित स्वर--रे, प पारोह --सा गमध निमा अपरोह --मा नि ध म ग सा। पकड-गमा निध निसा मग मध निध मग मा। ममय-रात्रि का दूसरा प्रहर । दुर्गा राग के प्रकार हैं, उपरोक्त प्रकार समाज थाट का है. इसमें रेप वर्जित करके श्रोडुव जाति का मानते हैं। दूमरा प्रकार बिलावल थाट का दुर्गा है, उसे भी हम नीचे दे रहे हैं। समाज थाट के दुर्गा मे धम की स्वर मगति रक्ति वर्धक होती है। कभी-कभी इसके प्रारोह में तीन निपाद का प्रयोग भी करते है। ३०-दुर्गा (विलावल थाट) मस वादी मवादि लखि, गनि सुर वर्जित मान | तपहिं बिलाबल मेल की, दुर्गा ले पहचान ॥ राग-दुर्गा वर्जित स्वर-~ग, नि थाट --निलावल पारोह--मा रे म प ध सा जाति-औडुव अपरोह -सा घमरेसा। वादी--म, मम्बादी म पकड-प, मप, वमरे,प, साध, सारेपघ, मरेमा स्वर--मन शुद्ध ममय-रात्रि का दूसरा प्रहर इस दुर्गा मे गन्धार के न होने से सोरठ का रूप मलकने लगता है, किन्तु मोरठ की आरोही मे रेव नहीं होते और इस राग में रेध मौजूद हैं, इसलिये यह उसमे बच जाता है । इस राग में मध्यम स्पष्ट लगने मे राग मिलता है। ३१-शुद्ध कल्याण कल्यानहि के मेल में, चढते मनी हटाइ । वही शुद्ध कल्यान है, गध सबाट सुहाड ।। राग--शुद्धरल्याण वर्जित स्वर-आरोह में म, नि थाट-कल्याण श्रारोह-सा रे ग प य सा जाति-औडव सम्पूर्ण अवरोह -सा नि ध प म ग रे सा नादी-ग, सम्यादी-व पकड, रेसा, निधप मा, गरेपरे सा -चारगेट पिचार इस प्रकार प्रगट म्गेि हैं-