पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१६७

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१७६ ॐ सङ्गीत विशारद * ५२-रामकली भैरव के ही मेल में, मनि दोउ रूप लखाय । रिध कोमल सम्वाद पस, रामफली बन जाय ॥ राग-रामकली वजित-कोई नहीं प्रारोह-साग मप यनिसा । जाति-सम्पूर्ण अवरोह-सानिए पम पधुनिध पगमरेसा । वाढी-पचम, मम्बादी पहज पकड़-धूप मप धनिपग म रेसा । स्वर-रे कोमल व मनि दोनो समय-प्रातकाल । थाट-भैरव रामफली का साधारण स्वरूप भैरव राग के समान है। रामकली के कई प्रकार सुने जाते हैं । एक प्रकार मे म नि आरोह में वर्जित हैं, इस प्रकार को शास्त्राधार तो है, किन्तु प्रचार में बहुत कम दियाई देता है । रामकली का एक और प्रकार है, जिमके आरोह-अवरोह में सातों स्वर लगते हैं, किन्तु यह प्रकार भैरव से मिल जाता है, उससे बचने के लिये इस प्रकार में गुणी लोग एक परिवर्तन यह बताते हैं कि भैरव का विस्तार मन्द्र और मध्य स्थान में रहना चाहिए और रामकली का मध्य और तार स्थान में विस्तार होना चाहिए। रामकली का एक तीसरा प्रकार भी है, जिसमें दोनों म और दोनों नि प्रयोग किये जाते हैं, यह प्रकार रयाल गायकों मे प्राय सुनने को मिलता है। इस प्रकार में तीव्र में और कोमल नि इन दोना स्वरों का प्रयोग एक अनूठे ढग से होता है। मपधुनिधप, गमरेसा इस प्रकार की तान रामकली के इस प्रकार मे प्राय मिलती है। उपरोक्त वर्णित प्रकारों के कारण इसके बादी सम्वाटी में भी मतभेद होना स्वाभा- विक है, किन्तु दोनों मध्यम और दोना निपाट वाले प्रकार में वादी पचम और मम्यादी पडज मानना ठीक होगा, ऐसा ही भातपण्डे पद्वति के अनुयायी भी मानते हैं। ५३--विभास ( भैरव थाट) जन भैरव के मेल सों, मनि सुर दिये निकाम । रिध कोमल, सम्बाद धग, औडुव रूप विभास ॥ राग-निभास याट–भैरव जाति-औडुव वादी- -7, मम्यादी ग स्वर-रेकोमल वर्जित-म नि आरोह-सा रे ग प धुप सा अवरोह-सा प गपप गरेसा पफड, प, गप, गरेसा । ममय--प्रातकाल विचार इस प्रकार प्रगट किये हैं -