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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१६६

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  • सङ्गीत विशारद *

१७५ ५०-तोड़ी रिगधा कोमल, तीव्र मा, धग संवाद बखान । सम्पूरन तोड़ी कही, द्वितिय प्रहर दिन मान । " राग-तोड़ी थाट-तोड़ी जाति-सम्पूर्ण वादी-ध, सम्वादी ग स्वर-रे गध कोमल, म तीव्र वर्जित स्वर-कोई नहीं । आरोह–सा, रेग, मपध, निसां । अवरोह–सांनिधुप, मग, रे, सा । पकड़-धूनिसा, रे, ग, रे, सा, म ग, रेग, रेसा । समय-दिन का दूसरा प्रहर । इस राग में पंचम स्वर का प्रयोग कुछ कमी के साथ करना चाहिए । नये विद्या- र्थियों को यह राग गाते समय, विकृत स्वरों का उचित स्थानों पर उपयोग करने में कठिनाई पड़ती है । इस राग की विचित्रता रे, ग तथा ध इन तीन स्वरों पर निर्भर है। तोड़ी कई प्रकार की प्रचलित है, किन्तु राग तोड़ी के लिये तोड़ी शुद्ध तोड़ी, दरबारी तोड़ी अथवा मियां की तोड़ी यह नाम लिये जाते हैं। इनके अतिरिक्त विलासखानी तोड़ी, गुर्जरी तोड़ी, देसी तोड़ी, आसावरी तोड़ी, गान्धारी तोड़ी, जौनपुरी तोड़ी, बहादुरी तोड़ी, लाचारी तोड़ी इत्यादि जितने नाम हैं, वे इस राग से भिन्नता रखते है अर्थात् वे राग बिलकुल अलग- अलग हैं। ५१-मुलतानी कोमल रिगधा, तीव्र मा, पस सम्बाद सजाइ । चढ़ते रिध को त्याग कर, मुलतानी समझाइ ।। राग-मुलतानी थाट-तोड़ी जाति-औडुव सम्पूर्ण वादी-प, सम्वादी-सा स्वर-रे गध कोमल, म तीव्र वर्जित स्वर-आरोह में रे ध । आरोह-निसा गमप निसां । अवरोह–सांनिधुप मग रेसा । पकड़-निसा, मंग, पग, रेसा । समय-दिन का चौथा प्रहर । तोड़ी की तरह इस राग में भी रे गध का प्रयोग वड़ी कुशलता से करना होता है । इन स्वरों के ग़लत उपयोग से राग का स्वरूप बदल सकता है और तोड़ी की छाया आ सकती है । मुलतानी में म ग की सङ्गत और पुनरावृति होती है। काफी थाट से आगे सन्धिप्रकाश रागों में प्रवेश करने के लिये यह राग अत्यन्त उपयोगी है । इस राग में सा प नि विश्रान्ति स्थान माने जाते हैं। प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में भी तीव्र मध्यम की मुलतानी पाई जाती है।