पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१७३

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  • सङ्गीत विशारद *

प्राय था उनके शरीर का कोई अन्न हिल जाता है । 'सम' पर गायक वादक विशेप जोर देकर उसे प्रदर्शित करते है। सम पर ही गाने बजाने की समाप्ति भी होती है। सम को 'न्यास' भी कहते हैं। खाली--प्रत्येक ताल के कुछ हिस्से होते हैं जिन्हे भाग भी कहते हैं, इन भागों पर जहा हाथ मे ताली बजाई जाती हैं वे तो "मरी" कहलाती हैं और जिस भाग पर ताली चन्द रहती है, वह “पाली" कहलाती है । ताल में माली भाग इसलिए रचने पड़े हैं कि इससे सम आने का अन्दाज ठीक लग जाता है । पाली का स्थान हाथ को फेककर दिखाया जाता है और भातखण्डे स्वरलिपि में इस स्थान को शून्य द्वारा दिपाया जाता है। भरी- ताल के जिन हिस्सो पर ताली बजाई जाती हैं उन्हे भरी' या 'ताली' के स्थान कहते हैं । वैसे जव हाथ से ताल दिसानी होती है तब भरी ताल को थाप द्वारा दिसाया जाता है। यति लय के चाल क्रम (गति) को रहते हैं। प्राचीन शास्त्रों में यति के पाच प्रकार माने गये हैं (१) ममा-आदि मध्य और अन्त इन भेटो मे 'समा' नामक यति तीन प्रकार की होती है । आरभ, बीच और अन्त, इन तीनो स्थान पर बराबर एकसी लय का होना ही समा यति कहलाता है। (3) श्रोतोवहा-जिसके आरम में विलम्बितलय, बीच में मध्यलय और अन्त मे द्रुतलय हो उसे 'श्रोतोवहा' यति कहते हैं। (३) मृदा-जिसके प्रारभ और अन्त में द्रुतलय, बीच में मध्यलय या विलयितलय होती है, उसे 'मृदङ्गा' यति कहते हैं । (४) पिपीलिका--जिसके अादि अन्त मे विलयित या मभ्यलय और बीच मे द्रुतलय होती है, उमे 'पिपीलिका' यति कहते हैं। (५) गोपुन्छा-जो गति द्रतलय से आरम्भ होकर क्रमश मध्यलय और फिर विलवित होती जाने उसे 'गोपुच्छा' यति कहते हैं । आवृति --प्रावृति का अर्थ है फेरना, दुहराना या चक्कर लगाना। जिस ताल को सम से सम तक जितनी बार दुहराया जायगा उसे उतनी ही आवृति कहेगे । कोई-कोई इसे पारर्तन या आरतक भी कहते हैं । जर्व-धर्म का अर्थ है आघात या चोट । तबले पर जब याप दी जाती है उसे जर्व कहते हैं, इसी प्रकार सितार पर जब मिजराव द्वारा आघात किया जाता है उसे भी कहते हैं। कायदा तनला या मृदङ्ग पर बजने वाले वर्ण समूह तालबद्ध होकर अभ्यास में थाने लगे और उन्हें शास्त्रीय रीति से तवले था मृदङ्ग में बजाया जासके एव उँगलिया सधी हुई और तैयार पड़ें, बोल स्पष्ट निकले, उमे 'कायदा' कहते हैं। टुकडा-तरला या मृदङ्ग पर वजने वाले बोलों का एक छोटा सा समूह जय दुगुन, विगुन, चौगुन या अठगुन की लय मे बजाकर सम पर उसकी समाप्ति होती है, उमे टुकडा कहते हैं। पिचार इस प्रकार प्रगट किये है -