- संगीत विशारद *
१८५ ग्रह-ताल के ४ ग्रह होते हैं, जिन्हें सम, विषम, अतीत और अनाघात कहते हैं । १-जव गीत और ताल एक ही स्थान से प्रारम्भ हों, उसे समग्रह कहेंगे। २-जब सम निकलने के बाद गाना शुरू किया जाय उसे विषम ग्रह कहेंगे, विषम का अर्थ है असमान या बराबर न होना। ३-अतीत का अर्थ है "पिछला" या अन्त । ताल की सम का अन्त होने पर जव गायन आरम्भ किया जाता है, उस स्थान को 'अतीत' कहते हैं। ४-जब पहिले गायन आरम्भ होजाय और पीछे ताल शुरू हो उसे अनाघात या अनागत ग्रह कहते हैं। लय विवरण समय के किसी भी हिस्से की समान ( एक सी ) चाल को 'लय' कहते हैं । जैसे घड़ी का पैन्डुलम एक सी चाल में खट-खट कर रहा है, उसका प्रत्येक 'खट' एक सैकिंड के समय में चल रहा है । यदि वही पैन्डुलम कोई खट सैकिंड में और कोई खट डेढ़- सैकिंड में करने लगे तो हम सङ्गीत की भाषा में कहेंगे कि इसकी लय बिगड़ गई, अर्थात् घड़ी की चाल बिगड़ गई। लय बराबर तभी रहेगी, जब वह घड़ी अपनी 'खट-खट' एक सी लय में करती रहेगी। इसी प्रकार सङ्गीत या गाने, बजाने, नाचने का सम्बन्ध लय से है । ऐकसी चाल में किसी ताल को बजाया जायगा तो उससे एक प्रकार की लय स्थिर करली जायगी, फिर उस ताल की गति घटाई या बढ़ाई जायगी, तब लय बदल जायगी। इस प्रकार मुख्य लय ३ मानी है:- (१) मध्यलय, (२) विलम्बित लय, (३) द्रुतलय । किन्तु जब सङ्गीत के बड़े-बड़े कलाकार विशेष रूप से अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं, तो उन्हें उपरोक्त ३ लयों के अतिरिक्त और लयों की भी आवश्यकता होती है । उनके लिये निम्नलिखित लयों का निर्माण और हुआः-अति विलम्बित लय, तिगुनलय, चौगुनलय, अठगुन लय, कुवाडीलय, आडीलय और बिआड़ी लय । इस प्रकार लय के कुल १० भेद हुए। अब यह बताते हैं कि इनमें भेद क्या है और इन्हें लिपिबद्ध कैसे किया जायगा, अर्थात् लिखा कैसे जायगा। लय की व्याख्या और उसे लिपिबद्ध करने का ढंग (१) मध्यलय जब कोई गायक गाना आरम्भ करे तो पहिले उसकी बराबर की लय मालुम कर लेनी चाहिये । बरावर की लय को ही मध्यलय कहते हैं, मध्य का अर्थ है बीच । अर्थात् वह इसी लय को आधार मानकर अन्य लयों का प्रदर्शन करेगा। अगले पृष्ठ पर हम १ गीत की पहिली लाइन दे रहे हैं, इसे मध्यलय में मानकर आगे की लय बताने में सुविधा होगी। साथ ही हम इस गीत की लाइन के १६ अक्षरों को गाने का समय मध्यलय में १६ सैकिंड मान लेते है। यह हमारा मानदण्ड है, इसी के गणित से अन्य लय समझाने की चेष्टा की जायगी। -