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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१८९

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  • सङ्गीत विशारद *

चतस्त्र २०४४%35 तित्र २२४३%६६ सकीर्ण lc JE OO मित्र २२४७-१५४ २०४५-१५० सकीर्ण २०४६-१६८ नोट-इसी तरह शेप छ तालों से भी पचीस-पच्चीस प्रकार पैदा होफर कुल १७५ हो जायेंगे। उपर के नकशों में चिन्ह वाले साने मे ताल चिन्ह लघु के आगे जो अक लिसे गये हैं, उनका अर्थ यह है कि लवु यहा पर इतनी मात्रा का माना गया है। जैसे लघु का चिन्ह । यह है, तो जहा पर चतस्रजाति में लघु दिसाया जायगा, वहा ।४ इस प्रकार लिसेंगे । तिस्रजाति में इस प्रकार लिखेंगे। मिश्रजाति में लघु को ७ इस प्रकार लिखेगे। सडजाति में लघु को।५ इस प्रकार लिखेंगे और सफीर्णजाति मे लनु को ।। इस प्रकार लिखेंगे। लघु के चिन्ह के आगे दिये हुए विभिन्न अकों द्वारा आसानी से यह मालुम हो जाता है कि यहा पर लनु की इतनी मात्रा मानी गई हैं। अन्य चिन्हों के साथ मात्रा लिसने का नियम नहीं है, क्योंकि केरल 'लघु' की ही मात्राये बदलती हैं, बाकी चिन्हों की मात्राओ में कोई परिवर्तन नहीं होता। कर्नाटकी ताल पद्धति की बाबत निम्नलिसित बाते विद्यार्थियों को याद रमनी चाहिये (१) कर्नाटक ताल पद्धति में लघु की मात्रा जाति भेद के अनुसार बदलती रहती हैं। (२) जिस ताल में जितने चिन्ह होंगे, उसमें उतनी ही ताली (थाप) या भरी तालें होंगी। (३) कर्नाटकी पद्धति में 'साली' नहीं होती। (४) सभी ताले सम से आरम्भ होती हैं। (५) कर्नाटकी पद्वति मे मुख्य ७ ताले होती हैं। (E) प्रत्येक ताल की पाँच-पाँच जातिया होती हैं। जिनसे ३५ प्रकार उत्पन्न होते हैं। (७) पाँच-पाँच जातियों के पाँच-पाँच भेद होते हैं, जिनमे १७५ प्रकार उत्पन्न हो जाते हैं। विचार इस प्रकार प्रगट क्यि है-