पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१९४

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  • सङ्गीत विशारद *

२०६ दाहिना और बांया दाहिना तबला लकड़ी का होता है और बांया मिट्टी या किसी धातु का। इन दोनों के मुँह पर चमड़ा चढ़ा रहता है, जिसे पुड़ी कहते हैं । पुड़ी के किनारे के चारों ओर चमड़े की गोट लगी रहती है, जिसे चांटी कहते हैं । दाहिने तबले की पुड़ी के बीच में और बांये ( डग्गे ) की पुड़ी के बीच से कुछ हटकर स्याही लगी रहती है । दांये और बांये दोनों की पुड़ी चमड़े की डोरी से कसी रहती है, इन्हें बद्धी या 'दुआल' भी कहते हैं । चांटी और स्याही के बीच का स्थान 'लव' कहलाता है, इसे मैदान भी कहते है। पुड़ी के चारों ओर गोट के किनारे पर चमड़े के फीते का बुना हुआ गजरा लगा रहता है । 'दुअालों' में लकड़ी के गट्टे लगे रहते हैं, जिन्हें नीचे खिसकाने पर तबले का स्वर ऊँचा होता है । और गट्टे ॐचे करने पर स्वर नीचा होता है । स्वर को अधिक ऊँचा नीचा करना होता है, तभी गट्टे ठोके जाते है। मामूली स्वर के उतार चढ़ाव के लिये चांदी के किनारे वाली पगड़ी या गजरे पर हल्का आघात करने से ही काम चल जाता है । तबला मिलाना तबले का दाँया जिस स्वर में मिलाना हो, उससे एक सप्तक नीचे उसी स्वर में बांया मिलना चाहिये। वैसे साधारणतः बांये को मिलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, फिर भी उपरोक्त नियम को ध्यान में रखते हुए बांया भी ठीक रखने से सुविधा ही रहती है। तबले को प्रायः षड़ज या पंचम में ही मिलाते हैं, किन्तु जिन रागों में पंचम स्वर वर्जित होता है, उनमें मध्यम स्वर में तबला मिलाते हैं । पहिले किसी एक घर को मिलाकर फिर दाहिनी ओर के उससे अगले घर को मिलाना चाहिये। इस प्रकार आगे के सब घर आसानी से मिल जाते हैं। मिलाने का एक प्रकार यह भी है कि पहले १ घर को मिलाने के बाद, फिर उसके सामने वाला ६ वां घर मिलाते हैं, फिर ५ वां घर और फिर १३ वां घर मिलाते हैं। इन घरों का अर्थ समझने के लिये तबले की पुड़ी की गोलाई का अन्दाज १६ भागों में कर लीजिये और जिसे सबसे पहिले आप मिला रहे हैं, उसे पहिला भाग समझिये, यही पहला घर है । तबला मिलाने से पहले गायक या वादक के स्वर को जान लेना आवश्यक है । यदि उसके स्वर के हिसाब तबला अधिक चढ़ा या उतरा हुआ है, तब तो गट्टों की ठोक-पीट करनी चाहिये, अन्यथा थोड़े से फरक के लिये जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं, चांटी के पास वाले गजरे पर आघात करके ही मिला लेना चाहिये। गजरे को ऊपर ठोकने पर तबला चढ़ता है और नीचे उल्टी चोट मारने पर तबले का स्वर उतरता है। तबला के दस वर्ण धा धिन तिट तिन नाक घी, ता किन कत्तु विचार । तबला के दस वर्ण हैं, इनको लेउ सुधार ॥