पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/१९३

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  • सङ्गीत विशारद *

तबले के प्रथम कलाकार उस्ताद बुल्लू सा बताये जाते हैं, जिनकी गिष्य परम्परा में आजकल कठे महाराज ओर किशन महाराज का नाम विशेष उल्लेखनीय है। तवले के घराने तवले के मुग्य चार घराने माने जाते हैं -(१) दिल्ली घराना (२) पजार घराना (३) वनारस घराना और (४) लग्गनऊ घराना । इन घरानो के अन्तर्गत आजकल निम्नाकित • याज प्रसिद्ध हैं- दिल्ली नाज-इसमें चॉटी का काम अपना विशेष महत्व रखता है । चॉटी के काम मे दो अँगुलिया तर्जनी और मध्यमा का विशेष काम रहता है। इससे सोलो वादन में विशेष सुविधा रहती है, एवं देशकार ओर कायदों का भली प्रकार निर्वाह होता है । दिल्ली घराने के मुरय प्रतिनिधि स० ग्पलीफा नत्यूमा, उस्तार कालेखा, उ० मसीत या आर उनके पुत्र उस्ताद करामतग्मा श्रादि हैं। पूर्वी वाज-इस वाज में प्राय गुले बोलों के काम अधिक महत्व रखते हैं, जिनके निकालने मे हथेली का प्रयोग अधिक होता है। पूर्वी राज में लखनऊ ओर बनारस शामिल हैं। इस घराने के मुरय कलाकार हैं-(१) मलीफा मुन्नेसा (लखनऊ) (२) उस्ताद आविदहमेन, (३) श्री अनोखेलाल और (४) श्री कठे महाराज | श्री कठे महाराज के शिष्यों में श्री नन्नजी, श्री चिक्कूजी, किशन महाराज आदि के नाम भी उल्लेसनीय हैं। ३० अहमदजान थिरका-इनका वाज पूर्व और पश्चिम का मिश्रित वाज माना जाता है | थिरकवा साहब का आजकल नाम भी अधिक सुना जाता है, इसका कारण यही है कि इन्होंने दिल्ली वाज और पूरव बाज दोनों की विशेषताओं को लेकर अपनी कला को विकसित किया है। सोलो ओर परन टुकडों के तो आप उस्ताद हैं ही, साथ ही साथ आप गये की सङ्गत करने में भी विशेष कुशल हैं। आपके कई ग्रामोफोन रेकर्ड भी तैयार हो चुके हैं, जिनमें आपकी कला का चमत्कार पाया जाता है । श्री भातसण्डेजी ने प्राचीन उत्तम तवलियों के नाम इस प्रकार बताये हैं। १ वकसू धाडी-प्रसिद्ध तबला वादक । २ मम्मू-गत वजाने में कुशल । ३ सलारी- -गत और परन बहुत सुन्दर बजाने वाला। ४ मम्बू-प्राचीन ढङ्ग के याज का उत्तम तचलिया । ५ नजू-बकसू का शिष्य ( लसनऊ ) इसका हाथ बहुत तैयार था । वर्तमान समय में तबले के उच्च कलाकार निम्नलिखित हैं (२) अहमदजान थिरकना (२) अल्लारसा (३) कठे महाराज (४) किशन महाराज शामताप्रसाद 'गुदड महाराज' (६) अनोखेलाल (७) करामतसा । विचार इस प्रकार प्रनाकप