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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२०८

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  • सङ्गीत विशारद *

२२३ तानसेन निःसन्देह, सङ्गीत शब्द से जिन व्यक्तियों को थोड़ा भी प्रेम होगा वे तानसेन के नाम से भी भली भांति परिचित होंगे। यद्यपि इस महापुरुष की मृत्यु को हुए लगभग चारसौ वर्ष हो चुके फिर भी सङ्गीत संसार में इसकी विमल कीर्ति आकाश के सूर्य के समान प्रदीप्त हो रही है। आज हम नीचे लिखी पंक्तियों में इस महान् सङ्गीतकार की जीवनी का संक्षिप्त परिचय पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं:- सन् १५०० ई० के लगभग की बात है, ग्वालियर में मुकन्दराम पाण्डे नामक ब्राह्मण निवास करते थे, कोई-कोई इन्हें मकरन्द पांडे के नाम से भी पुकारता था। पांडित्य और सङ्गीत विद्या में लोकप्रिय होने के साथ-साथ आपको धन-धान्य भी यथेष्ट रूप में प्राप्त था । यदि कोई चिन्ता थी तो सन्तान हीन होने की, आपकी पत्नी भी पूर्ण साध्वी एवं कर्मनिष्ठा थीं। दम्पति को संतान की चिन्ता हर समय व्यग्र बनाये रहती। आखिरकार वह समय भी आ गया, जबकि इनकी चिन्ता एक दिन हमेशा के लिये समाप्त हो गई। मुहम्मद गौस नामक एक सिद्ध फकीर के आशीर्वाद से सन् १५३२ ई० में, ग्वालियर से सात मील दूर एक छोटे से गांव “बेहट” में, इन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । बालक का नाम 'तन्ना' मिश्र रक्खा गया । * बच्चे का पालन पोषण बड़े लाड़-प्यार से हुआ-एक मात्र संतान होने के कारण मां-बाप ने किसी प्रकार का कठोर नियंत्रण भी नहीं रक्खा । फल स्वरूप दस वर्ष की अवस्था तक बालक 'तन्ना' मिश्र पूर्ण रूपेण स्वतंत्र, सैलानी एवं नटखट प्रकृति का होगया। इस बीच इसके अन्दर एक आश्चर्यजनक प्रतिभा देखी गई; वंह थी आवाजों की हूबहू नक़ल करना । किसी भी पशु-पक्षी की आवाज़ की असल कापी कर लेना इसका खेल था। शेर की बोली बोलकर अपने बारा की रखवाली करने में इसे बड़ा मज़ा आया करता था। एक दिन बृन्दावन के महान् सङ्गीतकार सन्यासी स्वामी हरिदास जी अपनी शिष्य मण्डली के साथ-साथ उक्त बाग़ में होकर गुजरे तो बालक 'तन्ना' ने एक पेड़ की आड़ में छुपकर शेर की दहाड़ लगाई । डर के मारे सब लोगों के दम फूल गये। स्वामी जो को उस स्थान पर शेर रहने का विश्वास नहीं हुआ और तुरन्त खोज की। दहाड़ता हुआ बालक मिल गया । बालक के इस कौतुक पर स्वामी जी बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने जब अन्य पशु- पक्षियों की आवाज़ भी बालक से सुनी तो मुग्ध हो गये और उसके पिता जी से बालक को सङ्गीत शिक्षा देने के निमित्त मांगकर अपने साथ ही वृन्दावन ले आये । गुरु कृपा से १० वर्ष की अवधि में ही बालक तन्ना धुरंधर गायक बन गया और यहीं इसका नाम 'तन्ना' की बजाय 'तानसेन' हो गया। गुरुजी का आशीर्वाद पाकर तानसेन ग्वालियर लौट आये। इसी समय इनके पिता जी की मृत्यु हो गई। मृत्यु से पूर्व पिता ने तानसेन को उपदेश दिया कि तुम्हारा जन्म मुहम्मद गौस नामक फकीर की कृपा से हुआ है, इसलिये तुम्हारे शरीर पर पूर्ण अधिकार उसी फ़कीर का है। अपनी ज़िन्दगी में उस फ़क़ीर की आज्ञा की कभी अवहेलना मत करना । पिता का उपदेश मानकर तानसेन मौहम्मद गौस फ़क़ीर के पास आ गये । फकीर साहब ने तानसेन को अपना उत्तराधिकारी बनाकर अपना अतुल वैभव आदि सब कुछ उन्हें

  • तानसेन की जन्म तिथि तथा सन् के बारे में विविध मत पाये जाते हैं, कुछ लेखक इनका जन्म

सन १५० और कोई १५२० ई० बताते हैं।