पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/२०९

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  • सङ्गीत विशारद *

- सौंप दिया और अर तानसेन ग्वालियर में ही रहने लगे। बाडे दिनो बाद राजा मानसिंह की विधवा पत्नी रानी 'मृगनयनी' मे तानसेन का परिचय हुआ। रानी मृगनयनी भी बडी मयुर एर विदुपी गायिका थीं, वह तानमेन का गायन सुनकर बहुत प्रभावित हुई । उन्होंने अपने सङ्गीत मन्दिर म शिक्षा पाने वाली हुसेनी ब्राह्मणी नामक एक सुमधुर गायिका लडकी के साथ तानसेन का विवाह कर दिया। विगाह के पश्चात् तानमेन पुन अपने गुरुजी के आश्रम वृन्दावन में शिक्षा प्राप्त करने पहुंचे । इमी ममय फकीर मोहम्मद गौस का अन्तिम ममय निकट आ गया। फल- स्वस्प गुरुजी के आदेश पर तानसेन को तुरन्त ग्वालियर वापिस आना पड़ा । फकीर माहय की मृत्यु हो गइ और अब तानसेन एक विशाल सम्पत्ति के अधिकारी बन गये। अब यह ग्वालियर में रहकर आनन्दपूर्वक गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे। इनके चार पुत्र और एर पुत्री का जन्म हुआ। पुत्रों का नाम-सुरतमेन, तरङ्गमेन, शरतसेन ओर विलास सा तया लड़की का नाम मरस्वती रक्सा गया । तानमेन की मारी मन्तान सङ्गीतकला के संस्कार लेकर पैदा हुइ । मभी बच्चे उत्कृष्ट कलाकार हुए। मगीत माधना पूर्ण होने के बाद मयमे प्रथम तानमेन को रीवा नरेश रामचन्द्र (राजाराम) अपने दरवार मे ले गये । इन्हीं दिनो तानमेन का मोभाग्य मूर्य चमक उठा। बादशाह अकबर सिंहामनारूढ हुए । महाराज रामचन्द्र और अकबर का प्रगाढ दोस्ताना या, अत महाराज ने तानमेन जैसे दुर्लभ रत्न को चादशाह अकबर की भेट कर दिया । सन् १५५६ई में तानमेन प्रकार के दरबार में दिल्ली आ गय। बादशाह ऐसे अमूल्य रत्न को पाकर अयन्त प्रसन्न हुया ओर तानसेन को उसने अपने नवरत्ना मे मम्मिलित कर लिया । यह तानमेन का शौर्यकाल था । बादशाह के अटूट स्नेह और कला का यथेष्ट सम्मान पारर तानमेन की यश पताका उन्मुक्त होकर लहराने लगी। अकबर तानसेन के मङ्गीत का गुलाम वन गया । क्लापारग्मी अकबर तानसेन की सगीत माधुरी में डूब गया। बादशाह पर तानमेन का ऐमा पस्या रड्न मबार देसर दूसरे दरवारी गवैये जलने लगे। और एक दिन उन्होंने तानमेन के विनाश की योजना बना ही डाली । यह मब लोग बादशाह के पास पहुंच कर कहने लगे कि हुजूर हम तानमेन मे 'दीपक राग' मुनपाया जाय ओर आप भो सुनें । इस राग को ठीक-ठीक तानसेन के अलावा और कोई नहीं गा सकता। घादशाह राजी हो गये। तानमेन द्वारा इस राग का अनिष्टकारक परिणाम बताये जाने ओर लाख मना करने पर भी अकबर की राजद नहीं टली और उसे दीपक राग गाना ही पड़ा । राग जैम ही शुरू हुया गर्मी बढी ओर वीरे-धीरे वायुमण्डल अग्निमय हो गया। सुनने वाले अपने-अपने प्राण बचाने को इधर-इयर छुप गये, किन्तु तानसेन का शरीर अग्नि की लपटों मे जल उठा। उसी ममय तानसेन अपने घर भागे वहा उनकी लड़की तथा एक गुरु भगिनी ने मेवराग गाकर उनके जीवन की रक्षा की। उम घटना के कई मास पश्चात् तानसेन का शरीर स्वस्थ हुआ । अकबर भी अपनी गलती पर बहुत पछताया । तानसेन के जीवन में पानी बरसाने, जगली पशुओं को बुलाने, रोगियों को ठीक करने आदि की अनेक चमत्कारपूर्णपटनायें हुई । यह निर्विवाद सत्य है कि गुरु कृपा से उसे बहुत से राग रागनिया सिद्ध ये और उस समय देश में तानसेन जैसा दूमरा कोई सङ्गीतज्ञ नहीं था। तानसेन ने व्यक्तिगत रुप मे कई रागो का निर्माण भी किया, जिनमे दरवारी- कादहा मिया की मारह मिया मल्लार आदि उल्लेखनीय है