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- सगीत विशारद *
उपरोक्त उद्धरणों से यह सिद्ध होता है कि पाहतनाद ही सङ्गीत के लिये उपयोगी है। इसी नाद के द्वारा सूर-मीरा इत्यादि ने प्रभु सान्निध्य प्राप्त किया । नाद के सम्बन्ध में तीन बातें ध्यान में रहनी चाहिये: (१) नाद का छोटा-बडापन ( Magnitude) (२) नाद की जाति अथवा गुण (Timbre) (३) नाद का ऊ चा नीचापन ( Pitch ) (२) नाद का छोटा-घडापन-जो अावाज नजदीक हो और धीरे-धीरे सुनाई पडे, उसे छोटा नाढ कहेंगे, और जो आवाज दूर से श्रारही हो, तथा जोर-जोर से सुनाई पडे, उसे बडा नाद कहेंगे। (क) नाद की जाति-नाद की जाति से यह मालुम होता है कि जो आवाज आ रही है, वह किसी मनुष्य की है, या किसी बाजे से निकल रही है। उदाहरणार्थ एक नाद हारमोनियम, सारगी, मितार, वेला इत्यादि से प्रकट हो रहा है, और एक नाद किसी गवैये के गले में प्रकट हो रहा है, तो हम नाद प्रकट होने की उस क्रिया को देये निना ही यह बता देगे कि यह नाद किसी साज का है या किसी मनुष्य का । इमी क्रिया को पहिचानना 'नाद की जाति' कहलाती है। (३) नाद का ऊँचा-नीचापन-नाद की उच्च-नीचता से यह मालुम होता है कि जो आवाज आरही है, वह ऊँची है या नीची। मान लीजिये हमने सा स्वर सुना, इसके बाद रे स्वर सुनाई दिया और फिर ग सुनाई दिया। इस प्रकार नियमित ऊँचे स्वर सुनने पर हम उसे उच्च-नाद कहेंगे, और सा स्वर के नीचे नि, च, प इत्यादि स्वर सुनाई दिये, तब उसे नीचा नाद कहेंगे। इसी बात को और अच्छी तरह इस प्रकार समझे, कि कोई भी नाद ह्या में थरथराहट या कम्पन होने पर पैदा होता है । यह कम्पन एक नियमित वेग यानी रफ्तार से तथा शीघ्रतापूर्वक होता है, तभी हमारे कानों को वह सुनाई देता) । प्रत्येक नाद उत्पन्न होने के लिये कम्पन का वेग प्रति सैकिण्ड निश्चित होता है, कम्पन का वेग जितना अधिक होगा, उतना ही नाद ऊचा होगा, ओर कम्पन सख्या कम होने पर उतना ही नाद नीचा हो जायगा। याद रहे कि यह कम्पन सस्या नियमित ही होगी, अनियमित कम्पन से शोरगुल ही पैदा होगा, नाद नहीं। जैसे-किसी बाजार की भीड मे या मेले में कोई जोर से चिल्ला रहा है, कोई वीरे चोल रहा है, किमी और बच्चे रो रहे हैं, कोई हँस रहा है, तो इन क्रियाओं के द्वारा वायु में जो कम्पन होंगे, वे अनियमित ही तो होंगे, और यह अनियमित कम्पन शोरगुल ही कहलायेगा। इसके विरुद्ध एक व्यक्ति कुछ गा रहा है, या वाजा बजा रहा है, तो उसको आवाज के कम्पन हवा में नियमित रूप से होगे, और वे हमें अच्छे भी मालुम होंगे, बस उसे ही सगीतोपयोगी 'नाद' कहेगे। श्रुति-- नित्यं गीतोपयोगित्वमभिनेयत्वमप्युत । लचे प्रोक्त सुपर्याप्त सगीतश्रुतिलक्षणम् ॥ ..