पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/४४

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  • सङ्गीत विशारद *

इसके विरुद्ध हमारे आधुनिक ग्रन्थकार अपना प्रत्येक शुद्ध स्वर श्रुति प्रथम पर स्थापित करते हैं। आधुनिक ग्रन्थकारों में "अभिनव राग मंजरी" के लेखक श्री विष्णु नारायण भातखण्डे का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इन्होंने श्रुतियों के विभाजन के बारे में इस प्रकार लिखा है: वेदाचलांकश्रुतिषु त्रयोदश्यां श्रुतौ तथा । सप्तदश्यां च विश्यां च द्वाविंश्यां च श्रुतौ क्रमात् ॥ पड़जादीनां स्थितिः प्रोक्ता शुद्धाख्या भरतादिभिः । हिन्दुस्थानीयसंगीते श्रुतिक्रमविपर्ययः । ऐते शुद्धस्वराः सप्त स्वस्वाद्यश्रुतिसंस्थिताः ॥ अर्थात्-भरत इत्यादि प्राचीन शास्त्रकारों ने श्रुतियां शुद्ध स्वरों में इस क्रम से बांटी हैं कि षड़ज चौथी श्रुति पर, रिषभ सातवीं श्रुति पर, गान्धार नवीं पर, मध्यम तेरहवीं पर, पंचम सत्रहवीं पर, धैवत बीसवीं पर और निषाद बाईसवीं श्रुति पर स्थित है । किन्तु हिन्दुस्थानी संगीत पद्धति में श्रुतियों को ७ शुद्ध स्वरों पर बांटने का क्रम इसके विपरीत रखकर प्रत्येक शुद्ध स्वर प्रथम श्रुति पर स्थापित किया गया है । इस प्रकार आधुनिक ग्रंथकार पहिली श्रुति पर षड़ज, पांचवी पर रिषभ, आठवीं पर गांधार, दसवीं पर मध्यम चौदहवीं पर पंचम, अठारहवों पर धैवत और इक्कीसवीं श्रुति पर निषाद कायम करते हैं। प्राचीन व अाधुनिक श्रुति स्वर विभाजननिम्न लिखित कोष्ठक में प्राचीन ग्रन्थों द्वारा, श्रुतियों का शुद्ध स्वरों पर विभाजन दिखाया गया है, साथ ही आधुनिक सङ्गीत ग्रन्थकारों ने शुद्ध स्वर कौन-कौन सी श्रुतियों पर माने हैं, यह भी दिखाया गया है । श्रुति । प्राचीन ग्रन्थों के | आधुनिक संगीत पद्धति के श्रुति नाम शुद्ध स्वर स्थान | अनुसार शुद्ध स्वर विभाजन तीव्रा... ... ... ... ... ... षड़ज कुमुद्वती ... मन्दा " ... छन्दोवती ५ । दयावती रिषभ ६ रंजनी ... ... .. रक्तिका ... ... ८ । रौद्री ... ... गांधार पड़ज ... ७