पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/४६

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  • सङ्गीत विशारद *

... ... ... मार्जनी | ... ... ... क्षिती... प (अचल ) रक्ता ... ... ... ... संदीपनी धु ( कोमल ) अलापनी मदन्ती... ध ( तीव्र ) रोहिणी रम्या... | नि ( कोमल ) • उग्रा .. ... | नि ( तीव्र ) क्षोभिणी तीव्रा. ... ... | सां ( तार ) ... ४०५ ... ४३२ ... ... १ अब हम प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक संगीत ग्रन्थकारों का एक तुलनात्मक चार्ट देकर यह बताते हैं कि श्रुति स्वर के बारे में उनके विचारों में कहां-कहां एकता और मतभेद है: प्राचीन-मध्यकालीन और आधुनिक ग्रन्थकारों का श्रुति-स्वर के बारे में - तुलनात्मक विवेचन (१) वे सिद्धान्त जिनपर तीनों ग्रन्थकार एकमत हैं। प्राचीन ग्रंथकार । मध्यकालीन ग्रन्थकार अाधुनिक ग्रन्थकार ( भरत-शाङ्ग देव आदि) | (अहोबल, श्रीनिवास, लोचन) (भातखण्डे आदि) २२ श्रुतियां एक सप्तक २२ श्रुतियां एक सप्तक | २२ श्रुतियां एक सप्तक में में मानते हैं। में मानते हैं। मानते हैं। शुद्ध तथा विकृत १२ | शुद्ध तथा विकृत १२ | शुद्ध तथा विकृत १२ स्वर स्वर इन्हीं २२ श्रतियों | स्वर इन्हीं २२ श्रुतियों पर | इन्हीं २२ श्रुतियों पर बांटते पर बांटते हैं। बांटते हैं। षड़ज, मध्यम, पञ्चम की प्राचीन ग्रन्थकारों की तरह | प्राचीन तथा मध्यकालीन ४-४ श्रुतियां, निषाद गंधार की २-२ श्रुतियां ही इन्होंने भी उसी प्रकार | ग्रंथकारों के अनुसार इन्होंने और रिषभ-धैवत की यह विभाजन स्वीकार भी इसी नियम का पालन ३-३ श्रुतियां मानकर करके प्राचीन सिद्धान्त | करके उनका मत स्वीकार स्वरों की स्थापना | स्वीकार किया है। किया है। करते हैं। Urh