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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/५१

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  • सङ्गीत विशारद *

डेढगुना ऊचा है उसी प्रकार रिपभ से डेढगुना अंचा वैवत है, गन्धार से डेढगुना ऊचा निपाद है और मध्यम स्तर से डेढगुना ऊचा तारपडज होगा। ___ इस हिसाब मे रिपभ का पचम हुआ धैवत । गवार का पचम हुआ निपाद । मध्यम का पचम होगा तार पडज। इस प्रकार "पडजपञ्चम भार" की निम्नलिखित ४ जोडिया बनीं। सपयो रिधयोश्चैव तथैव गनिपादयोः । सवादः समतो लोके मसयोः स्वरयौमिथः । अर्थात, सा - प, रे-ध, ग - नि, म - सा । ये सवाद मङ्गीतज्ञी में प्रसिद्ध हैं ही। पडज और पञ्चम स्वरों की ऊचाई नीचाई का सम्बन्ध ही पडजपश्चम भाव कहलाता है, जिसका गुणान्तर १५ अर्थात डेढ होता है। पडज की लम्बाई ३६ इच है इममे डेढ का भाग दिया तो ३६-११-२४ इंच पर पञ्चम होगया । इसी प्रकार पञ्चम, जो कि २४ इच पर स्थित है डेढ से गुणा कर दिया तो २५४११ = ३६ इंच पर पडज होगया। अब इसी हिसाव को लेकर अर्थात् पड़ज पञ्चम भाव से रे -ध की दूरी निकाली गई तो इस प्रकार निकली चूकि रिषभ की लम्बाई ३० इच है तो ३२-११ =२१९ इसलिये २१,इच पर धैवत स्वर स्थित हुआ। सारे ३६३२ २ ४ २१. १८ निपाद पसयोर्मध्यभागे स्यात् भागत्रयसमन्विते । पूर्वभागद्वय त्यक्त्वा निपादो राजते स्वरः ।। पचम और तारपडज की लम्बाई के ३ भाग करके पहिले • भागों को छोड़ दिया जाये तो तीसरे भाग पर निपाट स्वर होगा। पश्चम और तारपडज के बीच की लम्बाई ६ इन्च है, इसके तीन भाग किये गये ६-३-२ इन्च । क्योंकि पडज की लम्बाई १६ इच है, अत १+२%२० इच पर निपाद स्वर स्थापित हुआ। साप , नि सा सा प की बढकर ३६० हो गई।