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- सङ्गीत विशारदं *
५३ ध्यान रहे यह निषाद हमारा कोमल निषाद है, ऊपर हम बता चुके हैं कि श्री निवास ने अपने शुद्ध थाट में ग - नि यह दोनों स्वर वे लिये हैं, जिन्हें हम आजकल कोमल ग - नि कहते हैं। उपरोक्त वर्णन के अनुसार श्रीनिवास पंडित के शुद्ध स्वर स्थानों की लम्बाई आन्दोलनों सहित इस प्रकार हुई: श्रीनिवास के शुद्ध स्वर - स्वर का पूरा नाम . . तार की लंबाई आन्दोलन संख्या षड़ज (मध्य सप्तक) २४० ४८० W षड़ज ( तार सप्तक) षड़ज (अति तार सप्तक) मध्यम ( मध्य सप्तक) पंचम ( " ) गंधार ( " ) रिषभ (. " ). धैवत ( " - निषाद ( " ) २८८ २७० ४०५ ४३२ वह तो हुए श्रीनिवास के शुद्ध स्वर, अब रहे ५ विकृत स्वर ( यानी कोमल रिषभ, कोमल धैवत, तीव्रतर मध्यम, तीव्र गंधार और तीव्र निषाद। श्रीनिवास पंडित गधार और निषाद के विकृत होने पर उन्हें तीव्र गंधार और तीव्र निषाद कहते हैं, जबकि हमारी पद्धति में ग - नि विकृत होने पर कोमल ग - नि कहलाते हैं। श्रीनिवास के विकृत स्वर .. . कोमल रे . भागत्रमोदिते .मध्येः मेरोटभसंज्ञितात् । भागद्वयोत्तरं मेरोः कुर्यात् कोमलरिस्वरम् ।। मध्य सा और शुद्ध रे के बीच में तार की जितनी लम्बाई है उसके तीन भाग किये -~मोगा से दमो भाग.पा यो मेरु मे दमरे भाग पर कोपलो र गोलेगा।