पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/५७

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  • सङ्गीत विशारद *

-कोमल रे, कोमल ध और तीव्रतर म E-इनके कोमल तीव्र या शुद्ध और विकृत को छोडकर बाकी सर शुद्ध और सभी म्बर एक मत से वर्तमान हिदुविकृत स्पर वर्तमान हिन्दुस्थानी सगीत | स्थानी सहीत पद्धति में प्रचलित है। पद्धति में प्रचलित हैं। १०-कोमल रे, तीव्रतर म और कोमल ध | १०-कोमल रे तीन म और कोमल ध इनके यह तीन स्वर सङ्गीत पारिजात तथा यह तीनो स्वर स्थान मध्यकालीन ग्रन्थअन्य मध्यकालीन ग्रन्थकारों के आधार कारों से मेल नहीं पाते । यह इनके पर हैं। स्वय आविष्कारक हैं। भारतीय तथा योरोपीय स्वर सम्वाद हिन्दुस्थानी सङ्गीत पद्धति में जिन सरो को सा, रे, ग, म, प, ध, नि कहा जाता है, पश्चिमी (अंग्रेजी) सङ्गीत पद्धति मे इन्हें Do Re Mi Fa Sol La Se कहते हैं उन्होंने अपने निर्धारित पर स्टेंडर्ड के लिये सप्त स्वरों के सक्षिप्त नाम या इशारे इस प्रकार कायम किये हैं। C D E F G A B इन स्वर सकेतों के आधार पर ही पश्चिमी तथा अन्य देशों के मगोत कलाकार ( Artist ) अपने-अपने वाद्य (Music Instrument) तैयार करते हैं। अंग्रेजी के उपरोक्त स्वरों की तुलना यदि हिन्दुस्थानी सङ्गीत पद्धति के स्वरों से की जावे तो दोनों में काफी अन्तर दिसाई देता है। यद्यपि पश्चिमी सङ्गीतज्ञ अपने ७ स्वरों को हमारी सङ्गीत पद्धति के लगभग विलावल थाट अर्थात् शुद्ध स्वर सप्तक के समान मानते हैं, फिर भी हमारे और उनके स्वरा की आन्दोलन सख्या मे कुछ अन्तर दिसाई पड़ता है । इसका कारण यह है कि हमारे और उनके स्वरान्तर अलग-अलग हैं। वे अपने सात स्वरों को तीन भागों में विभाजित करते हैं (१) मेजरटोन MajorTone (२) माइनरटोन Minor Tone (३) सेमीटोन Semm Tone | पश्चिमी विद्वानों ने अपने सात स्वरो का परस्पर अन्तर अर्थात स्वरान्तर निकाल कर उनकी आन्दोलन सख्या निश्चित की है, इनके स्वरान्तर (फासिले ) इस प्रकार हैं - C-D D-E E-F F-G G-A A-BI B-C इन म्वरान्तरों में पहला, चौथा और छटा स्वरातर मेजरटोन दूसरा और पाचवा स्वरातर माइनरटोन तथा तीसरा और सातवा स्वरान्तर सेमीटोन कहलाता है। उपरोक्त स्वरान्तरों के द्वारा ही पश्चिमी सङ्गीत, पण्डितों ने स्वरों की आन्दोलन न घसण्या इस प्रकार निश्चित की है.--