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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/६१

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  • सङ्गीत विशारद *

सल्या को दक्षिणी सगोतन्ना ने तो अपनाया किन्तु उत्तरी विद्वानों पर इसका विशेष प्रभाव नहीं पडा ) फिर भी उत्तर भारत के मङ्गीतज्ञ थाटों की कुल निर्धारित ७२ वाली सल्या को गलत नहीं मानते । थाटी की यह सख्या अधिक होने के कारण उत्तरी पद्धति के लिये अनुकूल नहीं रही, अत आधुनिक काल के विद्वान महगीताचार्य प०विपनारायण भातसडे ने उक्त ७२ थाटों में से केवल १० बाट चुनकर समस्त प्रचलित रागों का वर्गीकरण किया, जिसे उत्तर भारतीय मगीत विद्यार्थियों ने अपना कर राग-रागिनी की प्राचीन पद्धति से अपना पीछा छुडाया। इस प्रकार लोचन कवि से प्रारम्भ होकर यह याट पद्धति चकर काटती हुई श्री भातग्रण्डे के समय म श्राफर वैज्ञानिक रूप मे स्थिर होगई। थाट व्याख्या मेलः स्वरसमूहः स्याद्रामव्यजनशक्तिमान् । -अभिनवरागमञ्जरी अर्थात्-'मेल' (थाट ) स्वरों के इस समूह को कहते हैं, जिससे राग उत्पन्न हो सके । नाद से स्वर, स्वरों से ममक ओर मप्तक से याट तैयार होते हैं। एक सप्तक में शुद्ध विकृत ( कोमल तीव्र ) मिलकर कुल १० स्वर होते हैं, यह पहले बताया ही जा चुका है । इन्हीं १० स्वरों की सहायता से थाट तैयार होते हैं । थाट को ही सस्कृत में 'मेल' कहते हैं। (१) यद्यपि थाट १२ स्वरो से तैयार किये गये हैं, किन्तु एक थाट मे ७ स्वर ही लिये जाते हैं, यह ७ स्वर उन्हीं १० स्वरों में से चुन लिये जाते हैं। () वे सात स्वर, सा रे ग म प ध नि इसी क्रम से और इन्हीं नामों से होने चाहिये । यह हो सकता है कि उपरोक्त ७ स्वरों में कोई कोमल या कोई तीव्र लेलिया जाय, चिन्तु सिलसिला यही रहेगा । राग में यह स्तर इस क्रम मे हों या न हो, किन्तु थाट में इस क्रम का होना आवश्यक है। राग मे ७ स्वर से कम भी हो सकते हैं, किन्तु थाट मे ७ स्वरों का होना जरूरी है । अर्थात् थाट का सम्पूर्ण होना आवश्यक है, क्योंकि यहुत से ऐसे राग हैं जिनमें सातों स्वर लगते हैं, इमलिये थाट में सातों स्वरा का होना आवश्यक है, अन्यथा उनसे सम्पूर्ण जाति के राग तैयार करने में अमुविधा होगी। (३) बाट मे आरोह-अवरोह दोनो का होना जरूरी नहीं है, बल्कि इसमें केवल श्रारोह ही होता है। (2) थाट में एक ही स्वर के दो रूप ( कोमल व तीन ) साथ-माथ भी आ सकते हैं। (५) थाट मे रजकता का होना आवश्यक नहीं है, यानी यह जरूरी नहीं कि थाट मुनने में कानों को अच्छा ही लगे । कारण, थाट मे क्रमानुसार ७ स्वर लेने जरूरी होते हैं और कभी-कभी एक स्वर के • स्वरुप ( कोमल तीत्र) भी साथ-माथ आ सकते है, इसलिये प्रत्येक थाट मे रजकता का रहना सम्भव है ही नहीं। (६) थाट को पहचानने के लिये, उसमे से उत्पन्न हुए किती प्रमुख राग का निगा नाठा मै - r fr- --- .. 41111