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- सङ्गीत विशारद *
शुद्ध मध्यम वाले १६ मेलों मेंन. १ पर भेरवी थाट न०६ पर भैरव थाट न० . पर आमावरी याट न० ११ पर काफी याट न० १५ पर समाज याट न० १६ पर बिलावल थाट तीव्र मध्यम वाले १६ मेला में२ पर तोड़ी याट १६ पर पूर्वी थाट ८ पर मारवा थाट १६ पर कल्याण याट यद्यपि हमारी पद्वति से उपरोक्त ३० थाट ही सम्भव है, फिर भी व्यकटमसी के ७. याट का मिद्वान्त इसलिये मानना पडता है कि इसके प्राषिकारक व्यकटमसी पडित ही ये और उन्होंने अपने देश की अर्थात् कर्नाटकी पद्धति के स्वरों से ७. थाट बनाने का जो सिद्वान्त मन से पहले ईजाद किया, गणित के अनुसार वह विलकुल ठीक था। किन्तु उन्होंने ७२ थाटो में से १६ थाट अपना काम चलाने को ऐसे चुन लिये जिनमे दक्षिणी रागों का वर्गीकरण किया जा सकता था। इसी प्रकार उत्तरीय विद्वानों ने उपरोक्त ७. याटों मे मे ३२ थाट ऐसे चुने जिनके अन्तर्गत उत्तरीय हिन्दुस्थानी सगीत पद्धति के रागा का वर्गीकरण सम्भन हो सकता था। फिर अपना काम चलाने के लिये 30 में से केवल १० याट उत्तरीय सङ्गीत मे चालू रस्से गये, जो आजतक प्रचलित हैं। इन १० थाटा को भी ३ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - प्रथम वर्ग मल्याण - रे, 4, ग, शुद्ध वाले रागों के लिये बिलावल समाज दूसरा वर्ग मेरव पूर्वी मारवा तीसरा वर्ग काफी भैरवी श्रासावरी रेकोमल तथा ग, नि शुद्व वाले रागों के लिये - ग, नि कोमल वाले रागों के लिये तोडी इस प्रकार इन १० थादों के अन्तर्गत हमारे प्रत्येक समय के राग पा सकते हैं इसीलिये भातपण्डे जी ने १० थाट लेकर शेष सब बाट विटेशीय समझ कर छोड दिये।