पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/७७

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  • सङ्गीत विशारद *

८० अन्तर ६८-ज्योति स्वरुपिणी । सा | शुद्ध ६-धातुवर्धिनी ७० नासिका ७१-कोसल ७०-रसिकप्रिया " " " " " इन ७२ थाटी से लगभग ५०० रागो की उत्पत्ति भी बताई गई है। उपरोक्त तालिका मे स्वरी के सक्षिप्त इशारे इस प्रकार समझिये - शु - शुद्ध प - पटश्रुतिक चतु श्रुतिक के - कौशिक निपाद का - काफली निपाद साधारण-साधारण गधार अन्तर- अन्तरगन्धार प्रति - प्रति मध्यम राग लक्षणम के ७२ थाटों की जो तालिका ऊपर दी गई है, उसमे अपने हिन्दुस्थानी पद्धति के १० याट भी मिलते हैं, उनके नाम और नम्बर इस प्रकार हैंहिन्दुस्थानी १० थाट दक्षिणी पद्धति के मेल व नम्वर १ कल्याण | मेच कल्याणी २ जिलावल धीर शकराभरण ३ नमाज हरि काम्भोजी ४ भैरव मायामालवगौल ५ पूर्जी कामवर्धिनी ६ मारवा गमनश्रिय ७ काफी सरहरप्रिय ८ आसावरी नट भैरवी भैरवी हनुमत्तोडी १० तोडी शुभपन्तुवराली