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- सङ्गीत विशारद *
नोट-यद्यपि एक सप्तक में ७ स्वर कहे गये हैं, किन्तु पिछले पृष्टों में बताया जाचुका है कि कोमल-तीन रूप करके स्वरों की सरया एक सप्तक में १० हो जाती है, देखिये वारह-वारह स्वरों की इस प्रकार तीन सप्तक होती हैं - सा रे रे ग ग म म प ध ध नि नि मन्द्र सप्तक सा रे रे ग ग म म प ध ध नि नि मध्य सप्तक सा रे रे ग ग म मै प ध ध नि नि तार सप्तक वर्ण गान क्रियोच्यते वर्णः स चतुर्धा निरूपितः । स्थाग्यारोह्यमरोही च सचारीत्यथ लक्षणम् ॥ -अभिनवरागमजरी अर्थात्-गाने की जो क्रिया है उसे वर्ण कहते हैं। वर्ण ४ प्रकार के होते हैं जिन्हें (१) स्थायी, (२) आरोही, (३) अमरोही और (2) सचारी वर्ण कहते हैं। (१) स्थायी वर्ण-एक ही स्वर बारम्बार ठहर-ठहर कर बोलने या गाने की क्रिया को स्थायी वर्ण कहते हैं, जैसे-सा सा सा सा, रे रे रे रे या ग ग ग ग । स्थायी का अर्थ है ठहरा हुआ। (0) आरोही वर्ण-नीचे स्वर मे ऊँचे स्वरों तक चढने या गाने की क्रिया को आरोही वर्ण कहते हैं। जैसे हमे पडज से आगे स्वर बोलने हैं-सा रे ग म प ध नि यह आरोही वर्ण हुआ। (३) अवरोही वर्ण-ऊँचे स्वर से नीचे स्वरों पर आने या गाने की क्रिया को अवरोही वर्ण कहते है। जैसे पड़ज स्वर से नीचे के स्वर बोलने हैं तो सा नि ध प म गरे सा यह अवरोही वर्ण हुआ। (४) सचारी वर्ण-स्थायी, आरोही और अपरोही उपरोक्त तीनों वर्गों के सयोग ग्रानी मिलावट से जन स्वरों की उलट-पलट की जाती है, अर्थात् जव तीनों वर्ण मिलकर अपना स्प दिसाते हैं, तब इस क्रिया को सचारी वर्ण कहते हैं। नोट-गाते बजाते समय उपरोक्त चारों वर्ण काम में लाये जाते हैं। कोई गायक जव गाना गा रहा हो तो उसके गाने में उपरोक्त चार वर्ण अवश्य ही मिलेंगे, क्योकि इनके विना गायन क्रिया चल नहीं सकती। पानापा