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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/८४

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  • सङ्गीत विशारद *

८७ or 9 षाड़व-पाड़व पाड़व-औडव औडव-सम्पूर्ण औडव-पाडव औडव-औडुव - 2 १ थाट की ६ जातियों से उत्पन्न रागों का कुल जोड़ ४८४

- जब १ थाट से ४८४ राग तैयार हो सकते हैं तो उत्तरी सङ्गीत पद्धति के १० थाटों ' से ४८४४१०४८४० राग बने और दक्षिणी सङ्गीत पद्धति के ७२ थाटों से ४८४x७२ =

३४८४८ राग तैयार हो सकते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ और भी राग केवल वादी स्वर को बदल देने से उत्पन्न हो सकते हैं, इस प्रकार यद्यपि रागों की संख्या और भी अधिक बढ़ सकती है, किन्तु प्रचार में २०० रागों से अधिक दिखाई नहीं देते, क्योंकि राग में रंजकता होनी आवश्यक है इस बन्धन के कारण राग संख्या मर्यादित सी होजाती है । ग्राम अथ ग्रोमास्त्रयः प्रोक्ताः स्वर सन्दोहरूपिणः । षड्जमध्यमगांधारसंज्ञाभिस्ते समन्विताः ॥१७॥ -सङ्गीत पारिजात ग्राम के सम्बन्ध में अहोबल पंडित उक्त श्लोक में बताते हैं कि स्वरों का एक समूह ही ग्राम कहलाता है। ग्राम ३ होते हैं, जिन्हें षड़ज, मध्यम तथा गान्धार इन नामों से घोषित करते हैं। दामोदर पंडित 'सङ्गीत दर्पण' में लिखते हैं: ग्रामः स्वरसमूहः स्यात्मूर्च्छनादेः समाश्रयः । तौ द्वौ धरातले तत्र स्यात् षड्जग्राम आदिमः ॥७॥ द्वितीयो मध्यमग्रामस्तयोर्लक्षणमुच्यते ।। ७६ ॥ अर्थात्-ग्राम स्वरों का समुदाय है। ग्राम का आधार मूर्च्छना है, इस लोक में ग्राम दो हैं, उनमें से पहला षड़ज ग्राम है और दूसरा मध्यम ग्राम है......... . II इस प्रकार संस्कृत ग्रन्थों में ग्रामों की परिभाषा देखने में आती है। श्री भातखंडे जी का कहना है कि प्राचीन ग्राम रचना प्राचीन सङ्गीत में उत्तम रूप से प्रयुक्त थी; परन्तु इस समय हमारे सङ्गीत में वैसी नहीं है । फिर भी सङ्गीत के विद्यार्थियों को ग्राम के विषय में जानकारी तो रखनी ही चाहिए।