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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/८६

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  • सङ्गीत विशारद *

- - प्राचीन ग्रन्थों में २२ श्रुतियों पर तीन ग्राम श्रुति नं० श्रुति नाम षड़जग्राम , मध्यमग्राम | गंधारग्राम १ । तीब्रा ... ... ...

कुमुद्वती m षडज षडज

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रिषभ

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रिषभ रिषभ ม ฟ ร गन्धार गन्धार

... ... गन्धार ... ... ... ... मध्यम ะ मंदा .. छंदोवती दयावती... रंजनी ... रक्तिका... रौद्री ....... क्रोधी ... ... वत्रिका... प्रसारिणी प्रीति ... मार्जनी... ... क्षिति ... ... रक्ता "" संदीपिनी १७ | अलापिनी ... ... मदंती ... रोहिणी रम्या.. ... .. उग्रा " ... ... क्षोभिणी ... ... १ । तीव्रा १२ ... ... मध्यम मध्यम पंचम ... .... पंचम ... ... पंचम धैवत ... ... धैवत ... ... धैवत निषाद निषाद suuum निषाद यद्यपि प्राचीन ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न प्रकार से श्रुतियों पर ग्राम दिखाये गये हैं, किन्तु बहुमत इसी पक्ष में हैं, जैसा कि. उपरोक्त कोष्ठक ( नक्शे) में दिखाया गया है। उपरोक्त कोष्ठक को देखने पर विदित होगा कि मध्यम ग्राम के स्वरान्तर अधिकांश रूप में पड़ज ग्राम के ही अनुसार हैं, केवल पंचम को १ श्रुति नीचे माना गया है। गन्धार ग्राम में रिषभ तथा धैवत स्वर उपरोक्त दोनों ग्रामों के रिषभ धैवत स्वरों से एक-एक श्रुति नीचे माने गये हैं और गन्धार निषाद स्वर एक-एक श्रुति ऊंचे माने गये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे प्राचीन ग्रन्थकार इस प्रकार ग्राम योजना से अपने -------- -शिशिमेल बनाने टोंगे किन्त ग्राम रचना का यह दड