पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/८७

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  • सङ्गीत विशारद *

आज की १२ स्वरो को प्रणाली पर लागू नहीं होता, 'इसलिये वर्तमान सङ्गीतज उपरोक्त प्राचीन ग्राम योजना को आधुनिक सङ्गीत के लिये निरर्थक ही समझते हैं। सङ्गीत के कुछ आधुनिक ग्रन्थों में तीन ग्रामों का कोष्ठक वर्तमान १२ स्वरों के हिसाव मे इस प्रकार दिया है - आधुनिक ग्राम चक्र । सा | रे ग म प नि पड़ज ग्राम म प ध नि गधार ग्राम मध्यम नि ग्राम ग म प ध स्वरी के उपर जो नम्बर दिये हैं, वे हारमोनियम के परदो के नम्बर मान लिये जाय तो इस ग्राम चक्र मे हमारे शुद्ध और विकृत १२ स्वर आसानी से निकल आते हैं । क्योंकि हारमोनियम वाजे की जिस चाभी या परदे पर पड़ज स्वर माना जाता है, उससे तीसरे पर शुद्ध रे, पाचवे पर शुद्ध ग, छटे पर शुद्ध म, आठवे पर प, दसवे पर शुद्ध घ और वारहरे पर शुद्ध नि होते हैं। इस प्रकार इन ७ शुद्ध स्वरों का "पड़ज ग्राम" होगया। इसे हम अपना शुद्ध बिलावल थाट भी कह सकते हैं। इसके बाद हमने पडज गाम के ५ नम्बर के शुद्ध ग को सामानकर स्वर गींचे तो हमें भैरवी थाद के सभी कोमल स्वर मिलगये, क्योंकि गन्धार स्वर को सा मानकर हमने स्वर सींचे थे, अत यह "गधार गाम" हुआ। इसके पश्चात् हमने पडज गाम के ६ नम्बर "म" स्वर को सामानकर स्वर सींचे तो इम सपक में हमे तीव्र मध्यम मिलगई, क्योंकि पडज गाम के पचम पर रिपभ बोली, धैवत पर शुद्ध गधार और निपाद पर तीन मध्यम । इस प्रकार यह "मध्यमगाम" हुआ और इससे हमे कल्याण याट के स्वर प्राप्त होगये। ___ गामों का यह विवेचन आधुनिक "स्केल चेन्ज" की दष्टि से उपयोगी सिद्ध हो सकता है, किन्तु यदि वारीकी से देगा जाय और स्वरो के आन्दोलनों का हिसाब लगाकर स्वरान्तरों की जाच की जावे तो यह विवेचन गणित की कसौटी पर ठीक नहीं उतरेगा । फिर भी हारमोनियम वाजे पर उपरोक्त नियम से ३ ग्रामों के द्वारा शुद्ध विकृत ५२ स्वर निकालने का यह ढग सरल और सुबोध है।