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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/९४

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  • सङ्गीत विशारद

3 वादी है, जो कि सप्तक का उत्तरांग स्वर है फिर क्यों इसे पूर्व भाग ( रात्रि के प्रथम प्रहर ) में गाते हैं ? उपरोक्त शंकाओं का समाधान यह है कि हिन्दुस्तानी सङ्गीत पद्धति में यद्यपि सा रे ग म को सप्तक का पूर्वाङ्ग और प ध नि सां को उत्तरांग कहा गया है, किन्तु कुछ पूर्वाङ्ग वादी तथा उत्तरांग वादी स्वरों को उपरोक्त वर्गीकरण में लाने के लिये पूर्वाङ्ग का क्षेत्र सा रे ग म प और उत्तरांग का क्षेत्र म प ध नि सां इस प्रकार बढ़ाकर माना गया है । इस प्रकार सप्तक के २ भाग करने से सा, म, प यह तीनों स्वर सप्तक के उत्तरांग.तथा पूर्वाङ्ग दोनों भागों में आजाते हैं। और जब किसी राग में इन तीनों स्वरों में से कोई स्वर वादी होता है, तो वह राग पर्वाङ्गवादी भी हो सकता है और उत्तरांग वादी भी हो सकता है। ऊपर वर्णित भैरवी और कामोद राग इसी श्रेणी में जाते है, अतः भैरवी में मध्यम वादी होते हुये भी यह उत्तरांग वादी राग माना जा सकता है और कामोद में पंचम वादी होते हुए भी उसे पूर्वाङ्ग वादी राग कह सकते हैं, क्योंकि यह दोनों ही राग सप्तक के बढ़ाये हुए क्षेत्र में आजाते है। इसी प्रकार अन्य कुछ राग भी इसी श्रेणी में आकर अपना क्षेत्र बनाते है । अतः यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जब किसी राग में वादी स्वर सा, म, प, इनमें से कोई स्वर हो और यह बताना हो कि यह राग पर्वाङ्ग वादी है या उत्तरांग वादी तो उस राग के गाने का समय देखकर तथा सप्तक के उत्तरांग और पर्वाङ्ग भागों के दोनों प्रकारों को ध्यान में रखकर आसानी से बताया जा सकता है कि अमुक राग पूर्वाङ्गवादी है या उत्तरांग वादी। स्वर और समय को दृष्टि से रागों के ३ वर्ग हिन्दुस्तानी सङ्गीत पद्धति में रागों के गाने-बजाने के बारे में समय सिद्धान्त ( Time Theory ) प्राचीन काल से ही चला रहा है । यद्यपि प्राचीन रागों में एवं अर्वाचीन रागों में समय सिद्धान्त पर कुछ मतभेद है जिसका कारण रागों के स्वरों में उलट फेर होजाना है, तथापि यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि हमारे प्राचीन सङ्गीत पंडितों ने रागों को उनके ठीक समय पर गाने का सिद्धान्त अपने ग्रन्थों में स्वीकार किया है । जिसे आज के सङ्गीतज्ञ भी स्वीकार करके अपने रागों में समय सिद्धान्त का पालन कर रहे हैं। हिन्दुस्थानीयरागाणां त्रयो वर्गाः सुनिश्चिता । स्वरविकृत्यधीनास्ते लक्ष्यलक्षणकोविदः ॥ -मल्लक्ष्यसंगीतम्. स्वर और समय के अनुसार हिन्दुस्थानी रागों के ३ वर्ग मानकर कोमल तीव्र (विकृत ) स्वरों के हिसाब से उनका विभाजन किया गया है: (१) कोमल रे और कोमल ध वाले राग । (२) शुद्ध रे और शुद्ध ध वाले राग। (३) कोमल ग और कोमल नि वाले राग । सन्धिप्रकाश राग• ऊपर बताये हुए ३ वर्गों में से प्रथम वर्ग अर्थात् कोमल रे और कोमल ध वाले राग सन्धिप्रकाश रागों की श्रेणी में आ जाते है । ध्यान रहे इस वर्ग में रे, ध कोमल के साथ-साथ