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पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/९५

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... ... .. IT Ire. जयपूर १००

  • सङ्गीत विशारद *

ग तीव्र होना जरूरी है। क्योंकि ग यदि कोमल होगा तो यह तीसरे वर्ग में आजायगा । दिन और रात की सन्धि यानी मेल होने के समय को सन्धिकाल कहते हैं। प्रात काल सूर्योदय से कुछ पहले और शाम को सूर्यास्त से कुछ पहिले का समय ऐसा होता है जिसे न तो दिन ही कह सकते हैं न रात ही । इसी समय को सन्धिप्रकाश की वेला कहा गया है और इस वेला मे जो राग गाये बजाये आते हैं, उन्हें ही सन्धिप्रकाश राग कहते हैं। जैसे भैरव, कालिंगड़ा, भैरवी, पूर्वी, मारवा इत्यादि । सन्धिप्रकाश के भी २ भाग माने गये हैं। (१) प्रात कालीन सन्धिप्रकाश राग और (२) सायकालीन सविप्रकाश राग । जो राग सूर्योदय के समय गाये वजाये जायेगे वे प्रात कालीन सथिप्रकाश राग होंगे और जो सूर्यास्त के ममय गाये जायगे उन्हे मायकालीन सधिप्रकाश राग कहेंगे। सधिप्रकाश रागों में मध्यम म्बर यडे महत्व का है । प्रात कालीन सधिप्रकाश रागों मे अधिकतर मध्यम कोमल यानी शुद्ध होगा और सायकालीन सन्धिप्रकाश रागों मे अधिकतर तीन मध्यम मिलेगा। जैसे भैरव और कालिगडा प्रात कालीन सधिप्रकाश राग है, क्योंकि इनमे शुद्व मध्यम है और पूर्वी अथवा मारवा सायकालीन सधिप्रकाश राग हैं, क्योंकि इनमे तीन मध्यम है। सधिप्रकाश रागो की एक साधारण मी पहचान यह भी है कि उन धैवत स्वर चाहे कोमल हो या तीव्र, किन्तु उनमे रे कोमल और ग नि तीव्र ही अधिकतर मिलेंगे। यद्यपि कोई-कोई सधिप्रकाश राग इम नियम का अपवाद भी हो सकता है, जैसेभैरवी इत्यादि। (२) रे ध शुद्ध वाले गग रे, ध शुद्ध (तीत्र ) वाले रागों के गाने का समय सधिप्रकाश के बाद आता है, क्योंकि सधिप्रकाश काल दिन में बार आता है, अत इस वर्ग के रागो के गाने का समय भी-४ घण्टों में २ वार आता है। इसमें कल्याण, विलावल और समाज थाट के राग गाये वजाये जाते हैं। प्रात झालीन मधिप्रकाश रागों के बाद गाये जाने वाले रागों मे, दिन चढने के साथ ही साथ शुद्ध रे तथा शुद्व घ की प्रधानता यढती जाती है। इस प्रकार प्रास ७ बजे से १० बजे तक और शाम को ७ बजे मे १० बजे तक दूसरे वर्ग अर्थात रेध शुद्ध नाले राग गाये बजाये जाते हैं। इस वर्ग में ग का शुद्ध होना आवश्यक है। साथ ही साथ इस वर्ग के रागों में मयम स्वर का भी विशेष महत्व है, वह इस प्रकार कि सवेरे ७ बजे से १० वजे तक गाये जाने वाले रागों में शुद्ध यानी कोमल मध्यम की प्रधानता रहती है, जैसे बिलायल, देशकार, तोडी इत्यादि ओर शाम के ७ बजे मे १० तक गाये जाने वाले रागों में तीन मध्यम की प्रधानता रहती है । जैसे यमन, शुद्धकल्याण, भूपाली इत्यादि । (३) कोमल ग, नि वाले राग इस वर्ग के रागों को गाने का समय रे ध शुद्ध वाले रागों के बाद आता है, अर्थात गनि कोमल वाले राग दिन के १० वजे मे ४ वजे तक और रात को १० वने से ४ बजे