पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/९६

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  • सङ्गीत विशारद *

१०१ तक गाये बजाये जाते हैं। इस वर्ग के रागों की खास पहचान यह है कि उनमें ग कोमल जरूर होगा, चाहे रे-ध शुद्ध हों या कोमल । इस वर्ष के रागों में प्रातःकाल के समय श्रासावरी, जौनपुरी, गांधारीटोड़ी इत्यादि राग गाये जाते हैं और रात्रि के समय में यमन इत्यादि गाने के बाद जैखे जैसे आधी रात्रि का समय आता जाता है, बागेश्री, जयजयवन्ती, मालकौंस इत्यादि राग गाये बजाये जाते हैं। 'सङ्गीत सीकर' से रागों के गाने की एक तालिका हम नीचे दे रहे हैं, जोकि रात्रि के प्रथम प्रहर के प्रमुख राग यमन से आरम्भ होती है, क्योंकि गायक वादक प्रायः यमन राग से ही अपना गायन वादन प्रारम्भ करते हैं। इस तालिका में 'भैरवी' को इसलिए छोड़ दिया गया है कि महफिल की समाप्ति प्रायः भैरवी पर ही करने का रिवाज सा हो गया है, अतः भैरवी का गायन काल यद्यपि प्रातःकाल है, किन्तु रात्रि के १ बजे २ बजे जब भी महफ़िल समाप्ति पर हो, भैरवी सुनाई दे जाती है। इसी प्रकार दिन में भी १-२ बजे कभी-कभी भैरवी सुनाई दे जाती है । तीव्र मध्यम वाले राग(१) यमन (२) शुद्ध कल्याण (३) मालश्री हिंडोल-( इस राग के विषय में दो मत प्रचलित हैं। रात्रिगेय हिन्डोल में ग वादी: होता है, किन्तु प्रातःकाल गाने वाले धैवत वादी मानते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि बसन्त ऋतु में यह राग चाहे जिस समय गाया जा सकता है)। (५) भूपाली (६) जैतकल्याण यहां से दोनों मध्यम वाले राग प्रारम्भ हुए . (७) हमीर (८) केदार (8) कामोद (१०) छायानट (११) बिहाग (१२) शंकरा (मध्यम का अभाव) तीव्र ग तथा कोमल नि लगने वाले रागों का प्रारम्भ(१३) खमाज (१४) देस (१५) तिलक कामोद (१६) जयजयवन्ती राग ( परमेल प्रवेशक) कुछ विद्वान जयजयवन्ती के पश्चात् ही मालकौंस गाने का समय बतलाते हैं ।