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- सङ्गीत विशारद *
१०५ कहा है कि मध्यम के इशारे पर ही सङ्गीतज्ञों के दिन और रात होते हैं । यद्यपि इस नियम के कुछ राग अपवाद भी हैं, किन्तु बहुमत इसी ओर है। 1 .परमेल प्रवेशक राग परमेल का अर्थ है, दूसरा अन्य कोई मेल और प्रवेशक अर्थात् प्रवेश करने वाला। यानी, परमेल प्रवेशक राग वे कहे जाते हैं जो किसी एक मेल (थाट) से अन्य किसी मेल या थाट में प्रवेश करते हैं, उदाहरणार्थ-संध्याकाल के गाने वाले सन्धि प्रकाश रागों को गाकर जब गायक समयानुसार दूसरे अन्य किसी मेल (थाट) के राग गाना चाहता है, जैसे भीमपलासी, धनाश्री और धानी गाकर जब कोई गायक मुलतानी गाने लगता है तो उससे यह संकेत मालुम होता है कि अब गायक किसी दूसरे थाट (यमन इत्यादि) में प्रवेश करने वाला है। इस प्रकार मुलतानी 'परमेल प्रवेशक' राग माना गया। एक उदाहरण से. यह और स्पष्ट किया जाता है: रात्रि को जब रे ध शुद्ध वाले वर्ग के रागों का समय समाप्त हो जाता है और गनि कोमल वाले वर्ग के रागों का गाने का समय आने वाला होता है, उस समय जयजयवन्ती राग “परमेल प्रवेशक" राग माना जायगा, क्योंकि जयजयवन्ती राग में रेध शुद्ध वाले वर्ग तथा ग नि कोमल वाले वर्ग दोनों को ही कुछ-कुछ विशेषता मौजूद हैं। जयजयवन्ती में दोनों गंधार दोनों निषाद और शुद्ध रे ध लगते ही हैं, अतः यह राग दूसरा थाट (मेल) आरम्भ होने की सूचना देकर 'परमेल प्रवेशक' राग कहलाता है। ( संतहमा १८.2 ली गई पर अप्रेल१८६२ दीकरीसा माटी226-2- १/२ बाबूलाल परिचय मरवरी सन १८५८ । भुलन देवी सोनी