पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/९९

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१०६ हिंदुस्तानी संगीत पद्धति के ४० सिद्धान्त -*-* कर्नाटकी सङ्गीत की तुलना में हिन्दुसानी सङ्गीत पद्वति अपनी कुछ विशेपता रचती है, यही कारण है कि आज मैसूर-मद्राम और कर्नाटक को छोडकर शेप समस्त भारत में हिन्दुस्तानी मगोत पद्वति हा प्रचलित है। यह पद्वति निम्नलिग्नित विशेप मिद्वातों पर अवलम्बित है । महोत निद्यार्थियों को इन सिद्धान्ती का भली प्रकार मनन कर लेना चाहिये। श्री भातखण्डे जी ने ऋमिक पुस्तक पाची ( मराठी ) में इनका विस्तृत उल्लेग्य किया है, उसी आधार पर निम्नलिग्नित मिद्वान्त दिये जा रहे हैं - १-हिन्दुस्तानी सङ्गीत पद्धति की नींव "विलाल थाट" को शुद्ध थाट मानकर रग्बी गई है, अर्थात् निलावल थाट के स्वर ही शुद्ध स्वर मप्रक का निर्माण करते हैं। २-समस्त रागो का वर्गीकरण तीन भागो में किया गया है (१) औडव (पाच स्वरों के राग) () पाढव (छै स्वरो के राग) (३) सम्पूर्ण (मात स्वरों के राग)। ३-पाच म्वरों मे कम का और ७ स्वरों से अधिक का (कोमल तीत्र मिलाकर १२ स्वर) राग नहीं होता। ४-औडुन पाडव और सम्पूर्ण इनके आरोह-अवरोह मे उलट-पलट होने से प्रकार के भेद माने जाते हैं, जिनका विवेचन इस पुस्तक में औडव-पाडव भेद के अन्तर्गत किया है। ५-प्रत्येक राग में थाट, पारोह-अवरोह, वादो-मम्यादी, समर और रजकता यह बात अवश्य होती है। ६–वाढी सम्यादी स्वरा में प्राय ? स्वरों का अन्तर होता है। वाढी स्वर पूर्वाङ्ग में होगा तो मम्बादी उत्तरान मे होगा अथवा वाढी सर उत्तराग में होगा, तो सम्बादी पूर्वाह्न में होगा। ७-वादी स्वर को बदल कर शाम को गाने वाला राग सवेरे का गाने वाला राग बनाया जा सकता है। ८-राग मे सुन्दरता लाने के लिये विनादी या वर्जित स्वर का भी किचित मात्र प्रयोग दिया जा सस्ता है। -हर एक राग में एक वादी स्वर होता है जिसका राग मे विशेप जोर रहता है, वादी स्वर के आधार पर ही पूर्व राग और उत्तर राग पहिचाने जा सकते हैं। १०-इस पद्धति के राग सामान्यत तीन वर्गो मे विभाजित किये जा सकते हैं (१)रे ध कोमल वाले राग (०)शुद्ध रे,ध वाले राग (३) गु नि कोमल वाले राग । सधिप्रकाश राग जो सूर्यास्त और सूर्योदय के समय गाये जाते हैं वे प्रथमवर्ग में अधिकतर पाये जाते हैं। प्रात कालीन सधिप्रकाश रागो में प्राय रे ध वर्जित नहीं होते तथा मायकालीन सधिप्रकाश रागो मे प्राय ग नि दोनों ही वर्जित नहीं होते।