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संग्राम

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(दोनों जाकर पेड़के नीचे खड़ी हो जाती हैं। गानेकी
ध्वनि आने लगती है।)

बाहिर ढूंढन जा मत सजनी
प्रिया घर बीच बिराज रहे री॥
गगन महलमें सेज बिछी है
अनहद बाजे बाज रहे री॥
अमृत बरसे, बिजली चमके
घुमर घुमर घन गाज रहे री॥

ज्ञानी--ऐसे महात्माओंके दर्शन दुर्लभ होते हैं।

गुलाबी--पूर्वजन्ममें बहुत अच्छे कर्म किये थे। यह उसीका फल है।

ज्ञानी--देवताओंको भी बसमें कर लिया है।

गुलाबी--जोगबलकी बड़ी महिमा है। मगर देवता बहुत अच्छा नहीं गाते। गला दबाकर गाते हैं क्या?

ज्ञानी--पगला गई है क्या। महात्माजी अपनी सिद्धि दिखा रहे हैं कि तुम्हारे लिये देवताओं की संगीत मंडली खड़ी की है।

गुलाबी--ऐसे महात्माको राजा साहब धूर्त कहते हैं।

ज्ञानी--बहुत विद्या पढ़नेसे आदमी नास्तिक हो जाता है। मेरे मनमें तो इनके प्रति भक्ति और श्रद्धाकी एक तरंग सी उठ रही है। कितना देवतुल्य स्वरूप है।