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मांके उदरसे जन्म लिया, एक ही स्तनसे दूध पिया, सदा एक साथ खेले, पर आज मैं उसकी हत्या करनेको तैयार हूँ। कैसी विडम्बना है। ईश्वर करे उसे नींद आगई हो। सोतेको मारना धर्म-विरुद्ध हो पर कठिन नहीं है। दीनता दयाको जागृत कर देती है......(चौंककर) अरे! यह कौन तलवार लिये बढ़ा चला आता है। कहीं छिपकर देखूं इसकी क्या नीयत है। लम्बा आदमी है, शरीर कैसा गठा हुआ है। किवाड़के दरारोंसे निकलते हुए प्रकाशमें आजाय तो देखूं कौन है। वह आ गया। यह तो हलधर मालूम होता है, बिलकुल वही चाल है। लेकिन हलधरके दाढ़ी नहीं थी। सम्भव है दाढ़ी निकल आई हो, पर है हलधर, हां वही है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। राजेश्वरीकी टोह इसे किसी तरह मिल गई। अपमानका बदला लेना चाहता है। कितना भयङ्कर स्वरूप हो गया है। आंखें चमक रही हैं। अवश्य हममेंसे किसीका खून करना चाहता है। मेरी ही मानका गाहक होगा। कमरेमें झांक रहा है। चाहूँ तो अभी पिस्तौलसे इसका काम तमाम कर दूं। पर नहीं। खूब सूझी। क्यों न इससे वह काम लूं जो मैं नहीं कर सकता। इस वक्त कौशलसे काम लेना ही उचित है। (तलवार छिपाकर) कौन है हलधर?

(हलघर तलवार खींचकर चौकन्ना हो जाता है)