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संग्राम

१०


खाने पीने में भ्रष्ट हो गये हैं।

राजे॰-उँह, होगा, हमें कौन उनके साथ बैठ कर खाना है। किसी दिन बुलावा भेज देना। उनके मन की बात रह जायगी।

हलधर-खूब मन लगाके बनाना।

राजे॰-जितना सहूर है उतना करूंगी। जब वह इतने प्रेम से भोजन करने आयेंगे तो कोई बात उठा थोड़े ही रखूंगी। बस इसी एकादशी को बुला भेजो, अभी पाँच दिन हैं।

हलधर-चलो, पहले घर की सफ़ाई तो कर डालें।





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