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पहलादृश्य
(स्थान—डाकुओंका मकान, समय—२।। बजे रात, हलधर
डाकुओंके मकानके सामने बैठा हुआ है।)

हलधर—(मनमें) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था कि बड़े आदमियों में भाई-भाईमें भी इतना प्रेम होता है। दोनोंके आंसू ही नहीं थमते थे। बड़ी कुशल हुई कि मैं मौकेसे पहुँच गया। नहीं तो वंशका अन्त हो जाता। मुझे तो दोनों भाइयोंसे ऐसा प्रेम हो गया है मानों मेरे अपने भाई हैं। मगर आज तो मैंने उन्हें बचा लिया। कौन कह सकता है कि वह फिर एक दूसरेके दुश्मन न हो जायंगे। रोगकी जड़ तो मनमें जमी हुई है। उसको काटे बिना रोगीकी जान कैसे बचेगी। राजेश्वरीके रहते हुए इनके मनकी मैल न मिटेगी। दो चार दिनमें इनमें फिर अनबन हो जायगी। इस अभागिनीने मेरे कुलमें दाग लगायी। अब इस कुलका सत्यानास कर रही है। उसे मौत भी नहीं आ जाती। जबतक जियेगी मुझे कल-