पृष्ठ:संग्राम.pdf/२८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

संग्राम

२६८

हलधर—तो इतनी रात गये घरसे क्यों निकले?

अचल—तुम कौन हो?

हलधर—मेरा नाम हलधर है।

अचल—अच्छा, तुम्हींने माताजीकी जान बचाई थी।

हलधर—जान तो भगवानने बचाई, मैंने तो केवल डाकुओंको भगा दिया था। तुम इतनी रात गये अकेंले कहां जा रहे हो?

अचल—किसीसे कहोगे तो नहीं?

हलधर—नहीं, किसीसे न कहूँगा।

अचल—तुम बहादुर आदमी हो। मुझे तुम्हारे ऊपर विश्वास है। तुमसे कहनेमें शर्म नहीं है। यहां कोई वेश्या है। उसने चाचाजीको और बाबुजीको विष देकर मार डाला है। अम्मांजीने शोकसे प्राण त्याग दिये। वह स्त्री थीं क्या कर सकती थी। अब मैं उसी बेश्याके घर जा रहा हूँ। इसी वक्त बन्दूकसे उसका सिर उड़ा दूंगा। (बन्दूक तानकर दिखाता है)

हलधर—तुमसे किसने कहा?

अचल—मिश्राइनने। चाचाजी कलसे घरपर नहीं हैं। बाबूजी भी १० बजे रातसे नहीं हैं। न घरमें अम्मांका पता है। मिश्राइन सब हाल जानती हैं।

हलधर—तुमने वेश्याका घर देखा है?